Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
30 Jan 2017 · 4 min read

आधुनिकता के इस दौर में संस्कृति से समझौता क्यों

आज एक बच्चे से लेकर 80 वर्ष का बुज़ुर्ग आधुनिकता की अंधी दौध में लगा हुआ है आज हम पश्चिमी हवाओं के झंझावत में फंसे हुए है |पश्चिमी देशो ने हमे बरगलाया है और हम इतने मुर्ख की उससे प्रभावित होकर इस दिशा की और भागे जा रहे है जिसका कोई अंत नही है |वास्तव में देखा जाए तो हमारा स्वयं का कोई विवेक नही है हम जैसा देख लेते है वैसा ही बनने का प्रयत्नं करने लगते है निश्चित रूप से यह हमारी संस्कृति के ह्रास का समय है जिस तेज गति से पाश्चात्य संस्कृति का चलन बढ़ रहा है, उससे लगता है कि वह समय दूर नहीं, जब हम पाश्चात्य संस्‍कृति के गुलाम बन जायेंगे और अपनी पवित्र पावन भारतीय संस्कृति, भारतीय परम्परा सम्पूर्ण रूप से विलुप्त हो जायेगी, गुमनामी के अंधेरों में खो जायेगी। आज मनोरंजन के नाप पर बुद्धू बॉक्स से केवल अश्लीलता और फूहड़पंन का ही प्रसारण हो रहा है हमें मनोरंजन के नाम पर क्या दिया जा रहा है मारधाड़, खुन खराबा, पर फिल्माए गए दृश्य मनोरंजन के नाम पर मानवीय गुणों, भारतीय संस्कृति व कला का गला घोट रहे हैं।माना की आधुनिक होना आज के दौर की मांग हैं और शायद अनिवार्यता भी है, लेकिन यह कहना भी गलत ना होगा कि यह एक तरह का फैशन है। आज हर शख्स आधुनिक व मॉर्डन बनने के लिये हर तरह की कोशिश कर रहा है, मगर फैशन व आधुनिकता का वास्तविक अर्थ जानने वालों की संख्या न के बराबर होगी, और है भी, तो उसे उंगलियों पर गिना जा सकता है। क्या आधुनिकता हमारे कपड़ों, भाषा, हेयर स्टाइल एवं बाहरी व्यक्तित्व से ही संबंध रखती है? शायद नही।
भारत वो देश है जहां पर मानव की पहचान उसके महंगे और सुंदर वस्त्र नही बल्कि उसके अदंर छुपे हुए नैतिक मूल्य है जो मानव के व्यवहार से प्रतिबिंबित होते है विवेकानंद जब शिकागो धर्म सम्मेलन में भाग लेने के लिए गये तो वहां के लोग उनकी भारतीय वेशभूषा को देख कर हास्य करने लगे कई लोगों ने मजाक बनाया बुरा भला कहा लेकिन जब उन्होंने धर्म सम्मेलन में अपने विचार व्यक्त किये तो सारा जन समूह भारतीय संस्कृति के रंग में रंग गया विवेकानन्द ने अपने ज्ञान से विदेशियों के समक्ष अपना लोहा मनवा दिया |
मैं आधुनिकता के विपक्ष में नही हूँ मैं समय के साथ बदलना आवश्यक मानता हूँ| लेकिन आधुनिकता का मतलब ये तो बिलकुल नही है की हम अपनी संस्कृति के स्वयं भक्षक बन जाएँ | वास्तविक रूप में आधुनिकता तो एक सोच है, एक विचार है, जो व्यक्ति को इस दुनिया के प्रति अधिक जागरूक व मानवीय दृष्टिकोण से जीने का सही मार्ग दिखलाती है। सही मायने में सही समय पर, सही मौके पर अपने व्यक्तित्व को आकर्षक व् सभ्य परिधान से सजाना, सही भाषा का प्रयोग तथा समय पर सोच-समझकर फैसले लेने की क्षमता, समझदारी और आत्मविश्वास का मिला-जुला रूप ही आधुनिकता है। लकिन आधुनिकता के नाम पर हो कुछ और रहा है आज हमारी वेशभूषा से लेकर सोच तक सारी पश्चिम के रंग में रंगी हुई है ||
हम इतने आधुनिक हो गए की व्यक्ति को व्यक्ति से बात करने की फुर्सत नही है सब काम ऑनलाइन है सब व्यस्त है किसी के पास समय नही है लेकिन वास्तव में देखा जाए तो सब व्यस्त नही है बल्कि तृस्त है आज तकनीक को हम नही बल्कि तकनीक हमे स्तेमाल कर रही है | सुबह उठते ही सबसे पहले मोबाइल पर हाथ जाता है की किस –किस के और कितने मेसेज आये ,फेसबुक पर कितने लाइक आये | आदमी पहले सुबह उठकर ईश्वर का नाम लेता था अपनी दैनिक – चर्या से निवृत्त हो फिर वो अपने कामकाज में लगता था परिवार के साथ माता-पिता के पास बैठता था आज हमे अपने बच्चों से बात करने का माता-पिता के पास बैठने का ही समय नही है आज भीढ़ में भी आदमी अकेलेपं का अनुभव करता है |
आज युवा इससे ज्यादा तृस्त है वो युवा जो आने वाले समय में इस देश की दिशा धारा निर्धारित करने वाले है | वेशभुषा हमारी निहायती फूहड़ और भद्दी हो गयी बिगडती हुई भाषा शैली और अस्त व्यस्त जीवन शैली से युवा तृस्त है | अपने बच्चो को छोटे-छोटे कपड़े पहनाने में भी हमें अब गर्व का अनुभव होने लगा है सलवार कुर्ते की जगह अब मिनी स्कर्ट और टॉप ने ले लिया लेकिन इसका परिणाम क्या हुआ समाज का वातावरण दूषित हुआ हाँ ये बात पक्की है मेरे इस विचार को पढकर कई तथाकथित सामाजिक लोग मुझे पिछड़ी और छोटी सोच का व्यक्ति आंकेगे | जिसका मुझे कोई रंज नही है लकिन ये वास्तविकता है |
एक बहुत सोचनीय स्थिति बनी हुई है और वो ये की हमारे बच्चे हमारी और आप की आधुनिक शैली अपनाने की वजह से समय से पहले बड़े हो रहे |
बचपन में दादा-दादियों द्वारा हमें अच्छी-अच्छी कहानिया सुनाई जाती थीं। कहते हैं कि जब बच्चा छोटा होता है तो उसका दिमाग बिलकुल शून्य होता है। आप उसको जिस प्रकार के संस्कार व शिक्षा देंगे उसी राह पर वह आगे बढ़ता है। अगर वाल्यकाल में बच्चों को यह शिक्षा दी जाती है कि चोरी करना बुरी बात है तो वह चोरी जैसी हरकत करने से पहले सौ बार सोचेगा। छोटी अवस्था में बच्चों को संस्कारित करने में माता-पिता, दादा-दादी व बुजुर्गो का बड़ा हाथ होता था। कहानियां भी प्रेरणादायी होती थीं। – कही ऐसा ना हो की अंधी आधुनिकता और स्वयं की मह्त्व्कंषा की वजह से हमारा सारा कुछ समय से पहले ही लूट जाये और हमारे सामने रोने के सिवा कुछ ना बचे देश में आधुनिकता के नाम पर एक अंधी दौड़ जारी है| आम इंसान आधुनिकता की इस दौड़ में अंधा व भ्रमित हो गया है, उसे यही समझ में नहीं आ पा रहा कि आधुनिकता के नाम पर कंपनियाँ आम इंसान को किस प्रकार गुलामी की बेड़ियों में जकड़ने की फिराक में लगी हुई हैं|

Language: Hindi
Tag: लेख
1 Like · 1914 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
वर्तमान राजनीति
वर्तमान राजनीति
नवीन जोशी 'नवल'
अर्थ  उपार्जन के लिए,
अर्थ उपार्जन के लिए,
sushil sarna
मुक्तक
मुक्तक
Rashmi Sanjay
कहीं भूल मुझसे न हो जो गई है।
कहीं भूल मुझसे न हो जो गई है।
surenderpal vaidya
समझना है ज़रूरी
समझना है ज़रूरी
Dr fauzia Naseem shad
उम्मीद -ए- दिल
उम्मीद -ए- दिल
Shyam Sundar Subramanian
*शराब का पहला दिन (कहानी)*
*शराब का पहला दिन (कहानी)*
Ravi Prakash
సంస్థ అంటే సేవ
సంస్థ అంటే సేవ
डॉ गुंडाल विजय कुमार 'विजय'
बन गए हम तुम्हारी याद में, कबीर सिंह
बन गए हम तुम्हारी याद में, कबीर सिंह
The_dk_poetry
चमकना है सितारों सा
चमकना है सितारों सा
कवि दीपक बवेजा
दीवानी कान्हा की
दीवानी कान्हा की
rajesh Purohit
होली के कुण्डलिया
होली के कुण्डलिया
Vijay kumar Pandey
शायरी - ग़ज़ल - संदीप ठाकुर
शायरी - ग़ज़ल - संदीप ठाकुर
Sandeep Thakur
सावन महिना
सावन महिना
डॉ विजय कुमार कन्नौजे
गज़ल
गज़ल
Mahendra Narayan
माँ का आशीर्वाद पकयें
माँ का आशीर्वाद पकयें
Pratibha Pandey
पहला कदम
पहला कदम
प्रकाश जुयाल 'मुकेश'
संवेदनायें
संवेदनायें
Dr.Pratibha Prakash
मन उसको ही पूजता, उसको ही नित ध्याय।
मन उसको ही पूजता, उसको ही नित ध्याय।
डॉ.सीमा अग्रवाल
!! पत्थर नहीं हूँ मैं !!
!! पत्थर नहीं हूँ मैं !!
Chunnu Lal Gupta
3094.*पूर्णिका*
3094.*पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
लैला लैला
लैला लैला
Satish Srijan
गुमराह जिंदगी में अब चाह है किसे
गुमराह जिंदगी में अब चाह है किसे
सिद्धार्थ गोरखपुरी
असफलता का घोर अन्धकार,
असफलता का घोर अन्धकार,
Yogi Yogendra Sharma : Motivational Speaker
#ग़ज़ल
#ग़ज़ल
*Author प्रणय प्रभात*
अपनी बेटी को
अपनी बेटी को
gurudeenverma198
बादल
बादल
लक्ष्मी सिंह
हिसाब रखियेगा जनाब,
हिसाब रखियेगा जनाब,
Buddha Prakash
दोस्त का प्यार जैसे माँ की ममता
दोस्त का प्यार जैसे माँ की ममता
प्रदीप कुमार गुप्ता
"पानी"
Dr. Kishan tandon kranti
Loading...