आधी आजादी मिली
आधी आजादी मिली,आधी अब भी शेष।
कुछ के तन पर है कनक, मलिन बहुत के भेष।।
मलिन बहुत के भेष,सड़क पर सोते निश दिन ।
काटें दिन अरु रात,जमीं पर ही वह छत बिन ।
कहै अटल कविराय ,समस्या दिखती सादी ।
गये पिछत्तर साल,मिली आधी आज़ादी ।।