आधा इंसान
वो पूर्ण नही हो सकता जब तक
करुणा, वेदना, प्रेम और अपनत्व
नही है जिनके अंदर ।
मैं कैसे कह दूं इंसान उनको
इंसानियत कही भी नजर न आये
जिनके अंदर ।।
आये दिन नित खबर है आती
लूट, मार, खून खराबा, छीना- छपटी ।
अपनापन कही भी नजर ना आये
हर एक इंसान बन बैठा है आज कुटिल और कपटी ।।
©गोविन्द उईके