आधार खेती बारी
आधार खेती बारी
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मूर्ख बुद्धिमान चाहे देश के जवान होखे,
राजा रंक सबकर आधार खेती-बारी।
तनवा के वस्त्र देला पेटवा के अन्न फल,
विधाता के हउवे अवतार खेती-बारी।
औषधि हजार देला अउरी मिठास खूब,
ई देश के उठावे सजी भार खेती-बारी।
केतनो गिनाईं गिन पाईं नाहीं नाव हम,
दे एतना अधिक उपहार खेती-बारी।।1।।
जेतने लगावअ् नेह ओतने तू पावअ् छेह,
नीक सबका से हअ इयार खेती-बारी।
गाइ एगो दुआरा प घास भूसा पुआरा प,
चउवनों के हउवे आहार खेती-बारी।
हरिहर खेत सजी मनवा के दुख हरे,
ई भरे हर घर के बखार खेती-बारी।
केतनो जनम होखे होखे उ किसान घरे,
येही तर से करीं हर बार खेती-बारी।।2।।
– आकाश महेशपुरी