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19 Nov 2022 · 15 min read

आदिवासी -देविता

आदिवासी – देवता

तरुण ने डॉ लता से बताया कि उसे मसूरी जाना है मेडिकल कॉन्फ्रेस है एव घूमना भी हो जाएगा डॉ लता ने कहा क्यो न मैं भी तुम्हारे साथ मसूरी चलू घूमना फिरना हो जाएगा तरुण ने कहा मुझे कोई आपत्ति नही है दो दिन बाद ही चलना है तैयारी कर लीजिये हम लोंगो को अपनी कार से ही जाना है ।

डॉ सुमन लता ने कहा मैं समय से तैयार रहूंगी ठीक दो दिन बाद डॉ तरुण अपनी कार से मसूरी के लिए निकले और साथ डॉ तरुण थी कार फर्राटे से सड़क पर दौड़ती चली जा रही थी कार कुछ देर डॉ तरुण ड्राइव करते तो कुछ देर डॉ लता आपस मे बाते भी करते देहरादून से पहले डोईवाला के बाद हरिद्वार पहुंचे।

हरिद्वार हरि की पैड़ी पर गंगा स्नान करने के बाद दोनों हरिद्वार रुके खनखल एव हरिद्वार के मंदिर मंशा देवी ,चंडी देवी आदि दर्शनीय एव पर्यटन स्थलों पर गए उसके बाद ऋषिकेश गए वहां दो दिनों तक घूमने फिरने के बाद लौरने लगे तभी उनके सामने एकाएक एक अजीबो गरीब व्यक्ति स्पीड में चलती कार के सामने आ गया और कार से दब गया ।

आस पास के लोग एकत्र होकर शोर मचाने लगे मारो मारो इसने ईश्वर बाबा को कार से कुचल दिया उस समय कार डॉ लता ही चला रही थी उन्होंने डॉ तरुण के मना करने के बाद भी कार रोक दिया और कार से बाहर निकली उस दौर में सड़कों पर कार चलाने वाली महिलाएं कभी कभार ही दिखती जो बहुत बड़े घराने या संभ्रांत परिवारो से होती।

भीड़ ने डॉ सुमन को कार से उतरते देख मारो मारो का शोर तो करती रही मगर किसी ने इस प्रकार का साहस या दुस्साहस नही किया तरुण को विश्वास हो गया कि कोई हंगामा नही होने वाला तो वह कार से उतारा और कार के नीचे आये व्यक्ति जिसे लोग ईश्वर बाबा के नाम से पुकार रहे थे को उठाया ईश्वर बाबा उठे और तरुण एव लता को अनाप सनाप बोलने वाली भीड़ की तरफ मुखातिब होकर बोले कि आप लोग व्यर्थ चिंता ना करे इस दम्पति का कोई दोष नही है ज्यो ही ईश्वर बाबा ने डॉ तरुण डॉ लाता को दम्पति से संबोधित किया डॉ तरुण एव डॉ लता एक दूसरे कि शक्ल देखने लगे ।

उनको बहुत आश्चर्य हुआ लेकिन ईश्वर बाबा इन दोनों की मन स्थिति को जानते हुए भी भीड़ से बोलना जारी रखा देखो भाईयों इसे आप लोग कोई दुर्घटना न माने मैं स्वयं इनके कार के नीचे जान बूझ कर आया हूँ ।

आप लोग कारण जानना चाहोगे क्यो तो लो सुनो सुनने से पहले देखो मुझे इतनी तेज चलती कार से दबने के बाद भी कोई चोट नही आई और मैं स्वस्थ एव सुरक्षित हूँ मैं ।

इसलिये इस दम्पति कि कार के नीचे जान बूझ कर आया क्योकि मुझे मालूम हो गया था कि इस दम्पति की यह अंतिम यात्रा होने वाली थी कुंछ दूर आगे चलने के बाद इनको भयंकर दुर्घटना का शिकार होना पड़ता और समाज का बहुत नुकसान होने वाला था।

मैंने इस दम्पति के जीवन की होने वाली हानि को प्रारब्ध से बचाया है क्योंकि इस दम्पति को जीवन मे मानवता के लिए बहुत बड़े बड़े कार्यो को पूर्ण करना है संत पुरुष का कार्य ही होता है वह समाज की अनमोल निधि को संरक्षित संवर्धित करे एव उंसे समय समाज में अपनी जिम्मेदारियों के निर्वाहन के लिए मार्गदर्शन एव प्रेरणा प्रदान करे इसी दायित्व का निर्वहन करने के लिये मैं स्वय इनके कार के नीचे आ गया ।

अब यह दम्पति निष्कंटक अपने जीवन उद्देश्य पथ पर आगे बढ़ता जाएगा मार्केश शनि साढ़े साती एव पापग्रहों के कुदृष्टि को मैंने स्वय इनके कार से दब कर समाप्त कर दिया है ।

विधाता को निवेदित किया है कि इस दम्पति के जीवन लकीरों को बढ़ा दे चूंकि डॉ तरुण एव डॉ लता आधुनिक वैज्ञानिक युग में शिक्षित हुये आधुनिक ख्याल के युवा थे अतः उनको लग यह रहा था कि यह बाबा कुंछ भी बोले जा रहा है जिसका कोई मतलब नही है ।

लोग ईश्वर बाबा की बातों को बड़े ध्यान से सुन रहे थे सुनने के बाद सब अपने अपने कामो के लिए जाने लगे जाने से पहले सभी बाबा का आर्शीवाद लेने के लिए जमीन पर लेटते हुये प्रणाम करते।

जिसमे डॉ लता एव डॉ तरुण से अधिक शिक्षित उच्च सामाजिक एव आर्थिक हैसियत एव रसूख के लोग भी थे यही बात डॉ तरुण एव डॉ लता को परेशान करने वाली थी ।

ठंठ का मौसम एव भयंकर बर्फबारी में भी बाबा के शरीर पर कुछ नही था सिर्फ एक अंग वस्त्र जिसे छोटी मोटी चादर कह सकते है और एक संत का पड़खर जिसे बाबा ने नीचे पहन रखा था भीड़ के सभी लोग एक एक करके जा चुके थे अब डॉ लता डॉ तरुण एव बाबा ही बचे थे ।

बाबा ने डॉ तरुण की तरफ मुखातिब होकर कहा जनता हूँ बेटा तुम्हे मेरी बात पर भरोसा नही होगा कारण तुम लोग आधुनिक वैज्ञानिक विज्ञान युग के युवा पीढ़ी हो और इन तकिया नुकुसी बातों पर कोई विश्वासः तुम्हारा नही है ।

मगर करना तो पड़ेगा ही तुम लोंगो का मेडिकल कॉन्फ्रेंस आज से पूरे चार दिन बाद मसूरी में है अब तो डॉ लाता एव डॉ तरुण को काटो तो खून नही उन्हें आश्चर्य तब हुआ जब बाबा को उनके पूरे यात्रा कार्यक्रम की ही जानकारी नही बल्कि उन्हें दोनों के जीवन के एक एक दिन की जानकारी थी ।

बाबा बोले बेटे तुम्हे मेरी बात माननी होगी तरुण बोला बोलो बाबा आपकी हर बात मानेंगे यदि मानने लायक होगी ।

बाबा ईश्वर बोले बेटे तुम्हे मेरे साथ मेरी कुटी तक चलना होगा और पूरे दो दिन रुकना होगा एक बात दूसरी बात यह कि तुम दोनों पैदल चलोगे कार यही छोड़ दो क्योंकि यह कार तुम्हारे शव को ही ढो रही है।

यह चार पहियों की तुम्हारे अर्थी की वाहन है डॉ तरुण एव लता को लगा कि बाबा उन्हें डरा रहा है मगर दोनों की प्रबृत्ति अन्वेषी थी अतः दोनों ने ही बाबा ईश्वर की बातों को स्वीकार कर लिया और बाबा के साथ उनकी कुटिया पर चलने को तैयार हो गए ।

बाबा के साथ चल दिये बाबा ने कहा बेटे आप अपनी कार चारो तरफ से बंद करके यही किनारे छोड़ दो देव भूमि है ऋषिकेश यहां तुम्हारी कार को तो नही छुएगा मगर तुम्हारे लौटते ही यह कार जल कर स्वाहा हो चुकी होगी क्योकि मैं इसे अपने तपोबल से भस्म इसलिये कर दूंगा की मैं नही चाहता कि यह कार तुम दोनों कि अर्थी ढोने के लिए रहे ।

तुम कोई दूसरी कार खरीद लेना बाबा ने फिर कहा कि तुम दोनों के मन मे यह प्रश्न जोरो पर उठ रहा होगा कि यह संत तुम दोनों पर इतना मेहरबान क्यो है जिसने तुम दोनों पर आने वाले काल को भी टालने का संकल्प कर लिया है।

इन सब प्रश्नों का उत्तर मिल जाएगा तुम दोनों बिना किसी सवाल जबाब के मेरे साथ चलो डॉ तरुण एव डॉ लता ने इशारों में एक दूसरे से बात किया और बाबा के साथ चलने की सहमति दोनों ने एक दूसरे को दे दिया डॉ तरुण ने कार किनारे पार्क किया और बाबा के साथ चलने के लिए तैयार हो गया ।

बाबा बोले यहां से पैदल ही चलना होगा मेरी कुटी यह से पांच कोस दूर घनघोर एवं भयानक जंगल में है लेकिन तुम दोनों को निर्भय निडर मेरे विश्वास पर मेरे साथ चलना होगा ।

डॉ लता एव डॉ तरुण बाबा के साथ चलने लगे लगभग दिन के ग्यारह बजे उनकी यात्रा बाबा के साथ प्रारम्भ हुई बाबा पूरे रास्ते कुछ नही बोले जिसके कारण डॉ लता एव डॉ तरुण भी शांत चुप बाबा के साथ चलते गए ।

लगभग सांय पांच बजे भयंकर जंगलों के बीच बाबा की कुटी पहुंचे सांय पांच बजे ही लग रहा था मध्य रात्रि है एक तो घनघोर जंगल दूसरा सर्द का छोटा दिन बाबा कुटी पर पहुँचने के बाद बोले यही मेरी कुटिया है आज पूरे पच्चीस वर्ष बाद मैं यहां से बाहर परमात्म की प्रेरणा से तुम दोनों की कार तक गया था।

मेरी दिन चर्या यहां से फर्लांग दूर गंगा से प्रातः ब्रह्म मुहूर्त में शुरू होती है और कुटिया तक आते आते समाप्त हो जाती है डॉ लता एव डॉ तरुण को भयंकर डरावने जंगल मे जहां जाने कैसी कैसी डरावनी आवाजे जीव जंतुओं की आ रही थी से भयाक्रांत थे बाबा ने उन्हें कुटिया के अंदर पड़े खास पूस के बिछावन पर बैठाया और हाथ मुह धोने के लिए एक घड़े के आकार के पात्र से कमंडल में जल दिया डॉ लता एव डॉ तरुण ने हाथ मुह धोने के लिए जैसे ही जल के छींटे मुह पर मारना शुरू किया लगा कि उनको कोई थकावट ही नही है ।

वे बिल्कुल तरो ताज़ा है उनके आश्चर्य का कोई ठिकाना नही रहा फिर बाबा ने कुटिया के सामने धुयी की राख जे कुछ भुने हुए कंद दिए जिसे खाने के बाद दोनों को इतनी संतुष्टि हुई शहर में तरह तरह के पकवानों के खाने के बाद भी ऐसी संतुष्टि नही हुई थी ।

डॉ लता डॉ तरुण को बहुत आश्चर्य हो रहा था कि यह बाबा ईश्वर इस भयंकर खतरनाक जंगलों में रहते कैसे है लेकिन अब दोनों को विश्वास इस बात पर होने लगा कि दुनियां विचित्रताओ विविधताओं से भरी है ।

अतः असम्भव कुछ भी नही है।रात ढलने लगी लकीन सर्द बर्फबारी में भी ठंठ उस कुटिया में नही लग रही थी जबकि कुटिया बाहर जानलेवा हाड़ कंपा देने वाली भयानक रात्रि की सर्द थी डॉ लता और डॉ तरुण ने रात्रि के भोजन के लिए बड़े चौड़े पत्ते पर खीर नुमा कोई भोज्य दिया जिसे डॉ लता एवं डॉ तरुण ने खाया बहुत ही स्वादिष्ट और सुकून देने वाला आहार जंगलों से अनेको जीव जंतुओं की आवाजों का आना निरंतर जारी था ।

बाबा ने भी भोजन किया और डॉ तरुण एव डॉ लता कुटिया में कुछ दूर बैठे बाबा बोले दोनों बलकल मृगछाल किनारे रखें है अपनी पसंद से धारण कर लो क्योकि पोशाक बदल कर ही भोजन एव शयन करना विधान है ।

भोजन तुम दोनों कर चुके हो अब वस्त्र बदल सकते हो क्योकि एक तो आराम मिलेगा और दूसरा कपड़े भी सुरक्षित ही रहेंगे लेकिन तुम लोंगो का कपड़े से भरा बैग तो तुम्हारी कार में ही रखवा दिया कम से कम यहां से लौटते समय तुम लोग साफ सुथरे कपड़े में जाओ कार से ज्यो अपना बैग वैगेरह निकाल लोगे अकारण धूं धु कर जल उठेगी और पल भर में स्वहा हो चुकी होगी।

डॉ तरुण एव डॉ लता ने एक साथ पूछा बाबा आपका जान बूझ कर हम लोंगो की कार के नीचे आना और घायल नही होना एव लोगो के आक्रोशित होने पर उन्हें समझाना हम लोंगो को अपने साथ अकारण लाना क्या कारण हो सकता है ?इन सबके पीछे ?

आप अच्छे संत है हम लोग पहले आपसे कभी मीले नही आपके अनुसार आपने हम लोंगो की सुरक्षा एव दीर्घायु के लिए स्वंय को दुर्घटना के चपेट में लाना आदि आदि के पीछे आपकी मंशा क्या है ?

बाबा बोले बच्चा तरुण मेरी मनसा कुछ भी नही है यह तो प्रारब्ध का ईश्वरीय निर्धारण है।

ईश्वर बाबा ने डॉ लता डॉ तरुण से कहा बेटे आप लोग ध्यान से मेरी बातों को सुनो मेरा पिछला जन्म में उत्तर प्रदेश के छोटे से रियासत शिवगढ़ में हुआ था वह दौर था जब मुगल साम्राज्य समाप्त होने वाला था और भारत में पश्चिमी देशों के व्यवसायियों ने आना शुरू किया और शासन की मनसा से व्यपार शुरू किया कभी फ्रांसिस कभी पुर्तगाली कभी ब्रिटिश मैं उस समय युवा था।

मैं अपने छोटे से रियासत में पिता मान मर्दन सिंह के साथ बिभन्न कार्यो से आता जाता उसी समय मुझे सुंदरी नाम की एक आदिवासी कन्या से प्यार हो गया मैं अपने पिता माता से चोरी छिपे जंगलों में जाता और सुंदरी भी अपने कबीले से छुप छुपाकर मुझसे मिलने आती और हम दोनों ढेर सारी बाते करते ।

सुंदरी मुझे बहुत अच्छी लगती और प्यार भी बहुत करती लेकिन मेरे और सुंदरी के प्यार को विवाह तक पहुँचने का अवसर नही मिला था।

एक दिन मैं सुंदरी से मिलने जंगलों में गया तभी सुंदरी के पिता को उन्ही के कबीले का नौजवान जो सुंदरी से प्यार करता था मगर सुंदरी उंसे नही चाहती थी लेकिन वह सुंदरी से जबरन शादी करना चाहता था इसीलिये वह अवसर मिलने पर सुंदरी के पिता को सुंदरी के विरुद्ध भड़काता रहता ।

एक दिन सुंदरी से मिलने जब मैं गया तभी कुछ देर बाद मिल्खा जो सुंदरी को चाहता था एवं सुंदरी के पिता कबीले के सरदार हिम्मत एवं कबीले के साथियों के साथ मुझे और सुंदरी को घेर लिया और उन्होंने मुझे सजा सुनाई की तुम जितनी तेज भाग सकते हो भागो कबीले का सरदार हिम्मत तुम पर तीर वह भी सिर्फ एक तीर चलाएगा तुम बच गए तो यह माना जायेगा कि तुम्हे हमारे देवता ने सुंदरी के लिए ही बनाया है और तुम्हारी शादी सुंदरी से कर दी जाएगी और तुम्हे कबीले में ही रहना होगा।

मैंने भागना शुरू किया और कबीले के सरदार हिम्मत सिंह ने तीर चलाया जो मुझे नही लगा कबीले के लोंगो ने मिल्खा के लाख विरोध के बावजूद मेरी शादी सुंदरी से कर दिया तब मैंने कबीले के सरदार हिम्मत सिंह से पिता का आशिर्वाद लेकर लौटने की बात कही और हम और सुंदरी शिवगढ़ रियासत अपने पिता का आशीर्वाद लेने गए मेरे पिता मान मर्दर्न सिंह ने जब मुझे सुंदरी के साथ देखा तब उनको समझते देर नही लगी कि मैंने आदिवासी कन्या से विवाह कर लिया है ।

पिता जी का क्रोध सातवे आसमान पर था माँ कल्याणी के बहुत समझाने एव मिन्नत करने के बाद भी पिता जी नही माने और मुझे और सुंदरी को घर एव रियासत से बेदखल कर वापस जंगल मे ही जाने के लिए कहा हम और सुंदरी पुनः कबीले में लौट आये मिल्खा तो पहले से ही अवसर की तलाश में था ।

उसे हर समय कोई ना कोई बहाना चाहिए था मेरे खिलाफ षडयंत्र करने के लिए वह करता भी रहता दो वर्षो बाद सुंदरी ने एक बेहद खूबसूरत लड़की को जन्म दिया जो तुम हो डॉ सुमन लता ।

मिल्खा ने सरदार हिम्मत सिंह के खिलाफ बगावत कर दिया और हिम्मत को मार स्वय सरदार बन बैठा और मुझे और सुंदरी को कबीले से बाहर कर दिया कबीलाई नियमानुसार जब किसी को एक कबीले से निकाल दिया जाता है तो दूसरे कबीले वाले भी उंसे कोई महत्व नही देते है ।

मुझे एव सुंदरी के लिए कोई जगह नही थी हम लोग कभी इस जंगल के कभी उस जंगल घूमते रहे थक हार कर मैं सुंदरी को लेकर शिवगढ़ पिता मानमर्दन सिंह के पास गया और उनसे क्षमा याचना के साथ शरण मांगी मुझे एहसास था कि पिता जी का क्रोध समय के साथ कम हो चुका होगा लेकिन मेरा अनुमान गलत सावित हुआ ।

लेकिन मा ने इस बार मेरी पुत्री को देखकर पिता जी को मेरे रहने के लिए मना लिया पिता जी ने आधे अधूरे मन से हम लोंगो को रहने की इजाज़त दे दी ।

इधर जंगल मे नए सरदार मिल्खा ने पुराने सरदार की हत्या कर दी।मिल्खा को इसपर भी चैन नही मिली वह शिव गढ़ के विरोधी रियासत राजा सुरामल से मिला और शिवगढ़ के विरुद्ध अपनी पुरानी रंजिस और सुंदरी का जिक्र किया ।

राजा सुरा मल अजीब किस्म का इंसान था वह युद्ध जैसी किसी भी राजनीति से घृणा करता मगर शातिर दिमाग का इंसान था उसने मिल्खा से कहा कि युद्ध आक्रमण जैसी कोई स्थिति के बिना ही शिवगढ़ को समाप्त कर देंगे।

शिवगढ़ में प्रतिवर्ष विजय दशमी के उपलक्ष्य में शिवगढ़ के राजा के कुल देवी मंदिर के पास तीन दिवसीय उत्सव का आयोजन होता जहां शिव गढ़ की समूची जनता एकत्र होती हाथी घोड़े आदि के करतब होते जिस समय विजय दशमी के मेले में हाथी घोड़े के करतब दिखाए जा रहे थे ठीक उसी समय राजा सुरा मल ने अपने हाथी शाल से आठ दस हाथियों को जो राजा मान मर्दन सिंह के कुल देवी मंदिर से कुछ दुरी पर थे विजय दशमी के आयोजन से पूर्व ही लाकर रखा और जिस दिन आयोजन अपने चर्मोत्कर्ष पर था उसी दिन हाथियों को शराब के नशे में धुत कर उत्सव आयोजन स्थल की तरफ भेज दिया।

हाथि एकत्र भीड़ पर ऐसे टूट पड़े जैसे काल अपने पैरों एव सुढो से शिव गढ़ की जनता को रौंद रौंद कर मार डाला भगदड़ मच गई और साथ ही साथ यह भी अफवाह फैल गयी कि हाथियों के झुंड को स्वयं राजा मान मर्दन ने ही एकत्र जनता के बीच छोड़ा था जनता में बगावत हो गयी और मौका मिलते ही मिल्खा ने कबायलियों के साथ मिल कर मेरे पिता माता एव भाईयों की धोखे से हत्या कर दी ।

मैं और सुंदरी अपनी बेटी को लेकर भागते रहे कभी इधर कभी उधर अंत मे हम लोग बिहार के गया जिला पहुंच गए जहाँ मैंने मेहमत मजदूरी करना शुरू किया और प्रिशा मेरी बेटी जो तुम आज लता हो कि परिवरिश करते उसी दौरान एक सेठ रमणीक लाल से मेरी मुलाकात हुई उनके कोई सन्तान नही थी बहुत सम्पन्न लेकिन बृद्ध लाचार रुग्ण मेरी सेवा से प्रसन्न उन्होंने अपनी सारी दौलत मुझे सौंप दिया और स्वर्ग सिधार गए ।

मैने उसी धन से एक आदिवासी लड़को की टुकड़ी का गठन किया और कबीलाई अंदाज में दो महीने इस गांव उस गांव घूमते फिरते शिवगढ़ पहुंचा और सुरा मल के सल्तनत को समाप्त कर मैं स्वयं रियासत का मालिक बन गया। जो नौजवान मेरे साथ चले थे उन्हें ससम्मान शिवगढ़ में बसाया शिवगढ़ में शांति और प्रगति की धारा बहने लगी ।

मेरी बेटी प्रिशा बड़ी हो चुकी थी मैंने उसका विवाह मध्य प्रदेश की ओरछा रियासत के राजकुमार वज्रवाहन से किया जो तुम हो डॉ तरुण ।

बहुत दिन बाद मेरी मृत्य हुई और मैंने जन्म लिया जो आज मैं तुम्हारे सामने हूँ मैं इस वीरान जंगल मे आने से पूर्व मै क्या था यह जान लेना तुम दोनों के लिए आवश्यक है ।

मैं इस जन्म में भी बहुत सम्पन्न राजपूत परिवार का इकलौता वारिस हूँ जब मैंने जन्म लिया तब तक भारत मे अंग्रेजो का राज्य स्थापित हो चुका था देश अंग्रेजो की गुलामी से आजाद होने के लिये संघर्ष कर रहा था मैं अरिमर्दन सिंह सिर्फ पढ़ने लिखने पर केंद्रित था मैंने इंग्लैंड से स्नातक किया और इंडियन सिविल सर्विसेज में चयनित हुआ मगर मुझे नौकरी पसंद नही आई और मैंने नौकरी छोड़ दिया और देश की आजादी के लिए कार्य करने लगा ।

नेता जी के साथ आजाद हिंद फौज में रहा और वहां से भाग कर इस जंगल मे पिछले चालीस बयालीस वर्षो से भगवान की आराधना करता हूँ ।

जब मुझे ज्ञात हुआ कि तुम दोनों ऋषि केश आये हो तो मुझे तुम्हारे प्रिशा और तुम्हारे जीवन का श्राप मैंने अपनी दिव्य दृष्टि से देखा और बचने चला आया प्रिशा और तुम यानी वज्र वाहन सिंह जंगलों में शिकार घूमने फिरने की नीयत से गये थे वहां तुम्हारी मुलाकात एक तपस्वी से हुई जिसने तुम्हे आगे न जाने के लिए रोका मगर तुम लोंगो ने उनकी बात नही मानी उन्होंने कहा था कि अगर आगे जंगलों में जाओगे तब तुम दोनों की आकस्मिक अकारण मृत्य हो जाएगी और उसके बाद के जन्म में भी दुर्घटना मृत्यु ही होगी लेकिन यदि तुम्हारे पिछले जन्म के जन्म दाता से किसी रूप में मुलाकात हुई और वे पहचान गए तो दुर्घटना मृत्यु के श्राप से बच जाओगे ।

तुम दोनो ने उस महात्मा की बात नही मानी और ज्यो ही आगे उनके बताए सीमा से गये आसमान से बहुत तेज गर्जना के साथ बिजली कड़की और तुम दोनों वही कालकलवित हो गए तब ना तो बरसात का मौसम था नाही वर्षा हो रही थी कल जब तुम दोनों यहा से जाओगे तब तुम उस महात्मा के श्राप से मुक्त हो चुके होंगे ।

उस महात्मा का उद्देश्य मात्र इतना ही था कि वह जनते थे कि तुम दोनों की कुछ ही पलों में मृत्यु होने वाली है अत तुम दोनों भय से उनके सानिध्य में रुक जाओ और वे तुम दोनों को अपनी साधना शक्ति से अल्पायु मृत्यु से बचा ले ।
तब तुम राजा थे और मेरी प्रिशा राजकुमारी और शक्ति धन मदांध कर देता है व्यक्ति को वही तुम्हारे साथ हुआ जानते हो कौन थे वह महात्मा आदिवासियों के वन देवता आज मैं भी उन्ही के स्वरूप में हूँ ।

अब तुम दोनों कुशल एव दीर्घायु हो जाकर विवाह अवश्य कर लेना क्योकि तुम दोनों कि जोड़ी कई जन्मों से है और रहेगी रात के बाद सुबह हुई फिर रात फिर सुबह बाबा ने डॉ लता एव डॉ तरुण को जंगल से बाहर का रास्ता दिखा दिया ।

डॉ लता एव डॉ तरुण ने बाबा का आर्शीवाद लिया और चल दिये दिन के दो तीन बजे ऋषिकेश वहां पहुंचे जहाँ दो दिन पूर्व अपनी कार खड़ी की थी कार वही जैसे थी वैसी ही खड़ी थी।

ज्यो ही डॉ तरुण ने कार में रखें ब्रीफकेस आदि निकाला एकाएक कार अपने आप जलने लगी देखते ही देखते स्वाहा हो गयी ।

डॉ तरुण और लता मसूरी गए तरुण ने अपना मेडिकल कॉन्फ्रेंस अटेंड किया कुछ दिन घूमने फिरने के बाद दिल्ली लौट गए।

ऋषिकेश से बाबा ईश्वर से अपनी मुलाकात का जिक्र करते मगर कोई कहता मात्र कल्पना है कोई कहता दोनों मोहब्बत कि खुमारी का ख्वाब देख रहे है।।

नन्दलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर।।

Language: Hindi
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