** आदमी अर् गुंगळया में फर्क **
गुंगळया इण माटी रे डगळा ने गुड़कांवता ले जावे है । मानखो गुंगळया
री भांति माथे रे बोझ ने लुड़कांवता जावे है । पण फेर भी माथे रो बोझ हळको नी होवे । भांत-भांत रे उत्तरदायित्व रो भार इतरो ज्यादा हो जावे है कि उण ने उतारतो-उतारतो ख़ुद ही तर जावे है । पण माथे रो बोझ हळको नी होवे । एक दूसरे ने टोपी पहणावण री कोशिश रै माय खुद बिना टोपी रह जावे है । इण बात रो पतो नी चाले कि खुद कठे है अर् मानखो कठे जा पुग्यो है । पिछड़ता. पिछड़ता इतरो थक जावे है कि उठ न चालण लायक नी रह जावे है ।
गुंगळया री भांति जिंदगी रो बोझ ढोवतों-ढोवतों ख़ुद गुड़क जावे है । दुनियां कई दिना बाद उण ने भूल जावे है कि कोई हुतो बपड़ो । जीवण फिरूं पैलां री भांति चालण लाग जावे है ।
मिनख अर् गुंगळयो एक ही भांति जीवन री गाडी ने गुड़कांवता चाले है अर इण दरमियान खुद ही गुड़क जावे है । चालतो रह जावे है । लोगा ने वहम हो जावे है कि इण जीवन री गाडी ने मैं ही गुड़कावां हाँ, ओ वहम आपस में बैर करावे है, नही तो जिंदगी इतरी सांतरी चालती कि रुकणे नाम ही ना लेंवती पण मिनख माया रो भरमावडो थपेड़ा खांवतो-खांवतो मौत री गोद में सो जावे है,पण उण रो वहम नी मिठे कि इण जिंदगाणी री गाडी ने हूं ही चलाऊँ हूं ।
इण वहम रे रेवता ही आदमी-आदमी कोनी बण पावे है अर मिनखपणो भूल जावे है ।अर गुंगळया री भांति रेंगता-रेंगता ही इण संसार सूं विदा हो जावे है । बस आदमी अर गुंगळया रे जीवण में इतरो ही फर्क है ।।
?मधुप बैरागी