” आत्मीयता “
डॉ लक्ष्मण झा “परिमल”
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युग बदला
हम प्रगति के
ऊँच्चतम शिखरों
पर चड़ते गए !
हरेक कल्पनाओं
को अपने प्रयासों
से साकार करते गए !!
कबूतर के युग
को हम अबतक याद करते हैं !
हम अभी तक दूत,डाकिया
और टेलीग्राम की बात करते हैं !!
अब हम बहुत दूर …
निकल पड़े हैं !
ऊँचाईयों को छूने लगे हैं !
पर ह्रदय में एक पीड़ा आज भी है
हम कुछ न कुछ आत्मीयता खोने लगे हैं !!
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डॉ लक्ष्मण झा “परिमल”
दुमका