” आत्मीयता “
डॉ लक्ष्मण झा “परिमल ”
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नए जमानों के साथ
हमें चलना होगा !
कदम आखिर हमको
मिलाना होगा !!
समाज सीमित परिधिओं
में नहीं रहा !
हमारा दिनप्रतिदिनों का
दायरा बढता रहा !!
निमंत्रण पत्र को दरवाजे पर
फ़ेंक देते हैं !
ईमेल ,व्हात्सप और मेसेस
भेज देते हैं !!
प्रीति-भोज का जमाना है
अब कहाँ ?
प्रेम से सबको खिलाना
अब कहाँ ??
अब तो बुफे सिस्टम का
युगआ गया !
लंगर सिस्टम ही
सबको यूँ भा गया !!
इस दौर में लगता है
सब कुछ पा लिया !
हमने भी प्रतिष्ठा के गगन
को छू लिया !!
आत्मीयता का बोध
होना ही प्रवल है !
कीचड़ के मध्य ही
खिलता कमल है !!
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डॉ लक्ष्मण झा “परिमल ”
दुमका