आत्मदेव की कथा
आत्मदेव की सुनो कहानी ।
समझा रहे वेद गुरु ज्ञानी ।।
आत्मदेव ब्राह्मण था एका।
बुद्धिमान अति ज्ञान विवेका।।
उत्तम सुख पाया परिवारा।
पुत्र चाह से दुखी विचारा।।
निकल गया तप करने भाई ।
संत कृपा दीन्हा फल आई।।
यह फल जा नारी को देना।
ज्ञानी सुत जन्मे फल लेना।।
हो प्रसन्न पहुँचा घर अपने ।
सुना रहा पत्नी को सपने ।।
पत्नी दिया नहीं कुछ ध्याना।
नाम धुंधली कथा बखाना।।
फल लेकर बहना घर आई।
मर्म आप सब दिया बताई।।
चिंता क्यों अपने मन रखती।
मम सुत जन्मत तेरा करती ।।
गौ माता को फल खिलवाया।
आत्मदेव से राज छिपाया।।
आत्म देव अति मनहि प्रसन्ना।
सुत हो सर्व गुणी संपन्ना।।
सुत गोकर्ण गाय से पाया ।
निज सुत धुंधक नाम कहाया।।
बड़े हुए जब दोनों भाई ।
आत्म देव चिंता अधिकाई।।
दुष्ट धुंधकारी सुत दूजा ।
नीच कर्म छोड़ी सब पूजा ।।
आत्म देव मन चिंता भारी।
पुत्र कर्म क्यों अत्याचारी।।
सुनकर गो कर्णहि उपदेशा।
तप हित गया छोड़ निज देशा।
पाँच वैश्या रख धुंधकारी ।
धर्म कर्म मर्याद बिगारी।।
पाँचों मिल कीन्हा कुछ ऐसा।
मरा पाप से असुरों जैसा ।।
तीरथ सेवन में गोकर्णा।
सुन वृतांत अरु भाई मरणा।।
कथा भागवत पूर्ण सुनाई।
हुआ उद्धार सदगति पाई।।
प्रमाण दिया बाँस इक शाखा ।
बाँस मध्य धुंधक को राखा।।
प्रतिदिन फूटे एक गठाना।
सात दिवस में फटा बिताना।।
धुंधक मुक्त किया गोकर्णा।
कथा भागवत मुनियों वरणा।।
व्यास पीठ से करें बखाना।
गहन अर्थ उपमा को जाना ।।
कथा भाव समझा विद्वाना।
आत्मदेव आत्मा ही माना।।
मनहि धुंधकारी के रूपा।
बुद्धि ज्ञान गोकर्ण स्वरूपा ।।
बाँस रूप यह अधम शरीरा।
मुक्ति मार्ग से कटती पीरा।।
पाँचों वैश्या इन्द्री मानों।
रस तन रूप गंध पहचानों।
इनके वश जो होता भाई।
वह मरता धुंधक की नाई।।
सात गाँठ लालच मन दोषा।
काम क्रोध मद मत्सर रोषा।
कथा समझ जिसके मन आती।
शंका दूर सभी हो जाती ।।
यही मुक्ति मारग समझाया ।
कथा श्रवण फल भक्तन भाया।।
राजेश कौरव सुमित्र