राम दीन की शादी
आज सबेरे रामदीन को
शिवमंदिर में देखा।
पूजा करते बोल रहा था,
देखो ब्याह की रेखा।
मैंने पूछा कहो भगतजी
क्या है कष्ट तुम्हारा।
भोलेबाबा बड़े दयालू,
करें तुरंत निपटारा।
रेखा सीमा उषा रजनी
या हो रमा सोनाली।
शीघ्र तेरी शादी हो जाय,
मिल जाये घरवाली।
खीस काढ़ के मुझसे बोला
सुनिए बिपत हमारी।
दुख में करो सहारा कुछ तो
रहूँ सदा आभारी।
सैतीस हुये कुँआरा रहते
खिचड़ी हो गये बाल।
इंतजार शादी का करते
पिचक गए है गाल।
कुछ तो ऐसा करो गुरुजी
चेहरे पर हो लाली।
एक अदद बीबी दिलवा दो
गोरी हो या काली।
पढ़ी लिखी हो या हो अनपढ़
ऊजुर नहीं है कोई।
झटपट दूल्हा बन जाऊँगा
राम करे सो होइ।
बरष बीसवें पहला रिश्ता
मेरे घर जब आया।
सप्तगगन पर रोब था मेरा,
रिश्ते को ठुकराया।
जबकि लड़की पढ़ी लिखी थी,
पांच सात लम्बाई।
काम घरेलू सब थे आते,
एम ए तलक पढ़ाई।
था कसूर बस रंग दबा था,
गाँव के थे मां बाप।
यही बात पर मना किया,
और खाई घर में डाट।
चाहत तो थी जयाप्रदा सी,
या माला मधुबाला।
सास लेक्चरर, जज ससुर हो,
आईएएस हो साला।
दे दहेज में सुइफ्टडिज़ायर
टी वी फ्रीज़ व सोफा।
छः तोले की चैन अंगूठी,
बेडबॉक्स संग तोहफा।
जीजा फूफा मामा जी को
नेग भी मिले अनोखा।
सब कुछ पहले तय हो जाये
बाद में न हो धोखा।
कितने अच्छे अच्छे रिश्ते,
आये द्वार हमारे।
हरदम नखरे रहा दिखाता,
अब हैं उलट सितारे।
काजूकतली ,कोकाकोला
रक्खा कॉफी पिस्ता।
रोज निहारु बाट किसी का
नहीं आता अब रिश्ता।
ख्वाब बड़े थे हद से ज्यादा,
किसमत हो गयी फेल।
उम्र चढ़ रही बढे निराशा,
अब तक हुआ न मेल।
मै नें पूछा रामदीन जी,
क्या हैंशियत तुम्हारी।
किस बूते पर थे इतराते,
रखते शर्त करारी।
दाँत फाड़ के मुझसे बोला,
मैं हूँ एम ए फेल।
टी टी ई हूँ पैसेंजर का,
है विभाग मेरा रेल।
जो भी गलती हुई गुरु जी,
माफी दे दो जल्दी।
कैसे भी शादी करवा दो
लगवा दीजै हल्दी।
मैंने कहा बात है अच्छी,
करवा दूँगा टिक्का।
पांच हज़ारा नोट दो मुझको
दो चांदी का सिक्का।
पैंट शर्ट और जूता मोज़ा ,
एक किलो भर काजू।
एक लड़की है तीस साल की
बस है जरा दुहाजू।
आठ पास है फस्ट डिवीजन, निपुण घरेलू काम।
सांवली सूरत साढ़े पाँच कद
फूलवती है नाम।
पिता है खेतिहर,मातागृहणी,
ट्रक ड्राइवर भाई।
चाचा उसके लेखपाल हैं,
घर में खूब कमाई।
हामी भरो तो बात बढ़ाऊ,
घर बस जाए तुम्हारा।
यदि इनकार है इस शादी से
तो फिर रहो कुवांरा।
न मामा भल काना मामा
यही सोच मुस्करा दिया।
असमंजस में हुआ तनिक पर,
हाँ में गर्दन हिला दिया।
मन में लड्डू लगे फूटने,
भगत खुशी से झूम गया।
चप्पल पहना रामदीन
और पीछे मुड़ कर चला गया।
मैने सोचा आज कमाया
पुण्य बड़ा सा चोखो।
रामदीन का घर बस जाए
और क्या चहिए मोको।
लोगों समय पर करो सगाई,
हो दहेज का भय।
हाथ जोड़कर सारे बोलो
सियापति रामचन्द्र की जय।
सतीश सृजन, लखनऊ,.