आज फिर नज़रें चुराकर चल दिये
आज फिर नज़रें चुराकर चल दिये
राज़ है कुछ मुँह छुपाकर चल दिये
तीरगी से प्यार कैसे हो गया
एक था दीया बुझाकर चल दिये
दिल मेरा तोड़ा मोहब्बत से बड़ी
और फिर वो मुस्कुराकर चल दिये
शौक़ अपने उनको बतलाते मगर
आदतें अपनी सुनाकर चल दिये
जिस जगह मिलने का वादा था किया
उस जगह हमको बुलाकर चल दिये
वास्ता उल्फ़त का हमने तो दिया
प्यार लेकिन वो भुलाकर चल दिये
बैठकर दरिया किनारे वो अभी
नेकियाँ सारी डुबाकर चल दिये
ज़िन्दगी ‘आनन्द’ पूछी उनसे जब
बेशकीमत है सुनाकर चल दिये
-डॉ आनन्द किशोर