आज फिर अकेले में रोना चाहती हूं,
आज फिर अकेले में रोना चाहती हूं,
मैं देर तक बिस्तर पर सोना चाहती हूं।
बहुत बदल लिया खुद को औरों की खातिर,
बस अब मैं पहले जैसा होना चाहती हूं।
थक गई अब सफर करते करते बहुत,
मैं किसी सुनसान राह पर खोना चाहती हूं।
काटें कितने बिछा दिए दुनिया ने यहां,
मैं हर क्यारी में फूल बोना चाहती हूं।
तेरी यादों का समंदर गहरा है तो क्या,
मैं इस में खुद को डुबोना चाहती हूं।
रौशन रहे तेरा जहान प्यार की रौशनी से,
मैं अपने सीने में खंजर चुभोना चाहती हूं।
ज्योति रौशनी