आज नहीं तो निश्चय कल
आज नहीं तो निश्चय कल
जीवन में दिन चार मिलें है,
बीत रहे बन सांझ सवेरे ।
चाहे जो भी कर ले उनका,
आज का पल बस हाथ में तेरे ।
बीता कल तो चला गया,
आने वाले का पता नहीं ।
न उपयोग किया यदि ‘अब’ का,
तो ईश्वर की खता नहीं ।
एक सवेरा नित्य गुजरता,
गया हुआ पल कभी न आता।
पुनरावृति नहीं साँसों की,
कोई हमें यही समझाता।
मिला जन्म मानव देही का,
ले विवेक जग में आया ।
है स्वतन्त्र जो चाहे कर ले,
प्रभ ने सब अवरोध हटाया।
बुरा किया तो बुरा मिलेगा,
विधि का कर्म विधान अटल।
अच्छे का अच्छा फल मिलता,
आज नहीं तो निश्चय कल।
सतीश सृजन लखनऊ,