आज के पापा
पापा! “मुझे लिखना अच्छा लगता है, मेरा गणित में मन नहीं लगता”। रचना ने धीरे से पापा से कहा। पर बेटी! तुम्हारे भविष्य का क्या होगा ? बिना विज्ञान के तुम इंजीनियर कैसे बनोगी? तुम्हारे करियर का क्या होगा? समाज में हम किसी को क्या मुंह दिखाएंगे? पापा! आप चिंता ना करें , मैं हिंदी से ही उच्च शिक्षा प्राप्त करूंगी फिर हिंदी की प्रोफेसर बनूंगी और हिंदी पढाऊंगी। मैं हिंदी का मान बढ़ाऊंगी। बेटी के दृढ़ विश्वास को देखकर पिता ने कहा, “ठीक है बेटा! तुझे जो अच्छा लगे वही कर पर जो करना मन लगाकर करना”। पापा का नाम रौशन करना जरूर पापा जरूर । पापा की बात सुनकर बेटी का चेहरा खिल उठा उठा।