” आज कुछ कह तो लूँ “
डॉ लक्ष्मण झा “परिमल ”
=================
मुझे नशा है लिखने का ! मेरी निगाहें किसी चीज पर पड़ जाती है या किसी क्षण समस्याओं से भिडंत हो जाती है तो मेरी कलम चल पड़ती है ! भाषा के बन्धनों को मैं नहीं मानता ! दिल और दिमाग जो कहे उसे ही मान लेता हूँ ! कभी मेरी लेखनी लेख का शक्ल अख्तियार कर लेती है ,कभी कविता बन जाती है और यदा-कदा व्यंगात्मक व्यंजन परोसने लगती है ! आप पूर्ण रूपेण आस्वथ रहें , हम इन लेखनियों में मर्यादा की लक्ष्मण रेखा कभी भी नहीं लान्घेंगे ! मृदुलता ही हमारे लेखनी का आधार है !……पर हमारे विचार ,हमारी सोच तो लोगों से भिन्य होंगे ही ! अपनी बात कहे रुक नहीं सकता !
———————————————————–
हमें यह ज्ञात है, आभास है
विचारों में विभेद हो सकता है ,
पर हर्ज क्या है किसी की बात सुनने में
कहीं इस में छुपा कोई राज हो सकता है !!
कुछ आप लिखें ,कुछ हम लिखें
अच्छी चीजों को सराहें ह्रदय से ,
जो अटपटी लगे ,आहत करे ,अस्वीकार्य हो
उसे हम त्याग दें अपने समय से !!
===================================
डॉ लक्ष्मण झा “परिमल ”
दुमका