आज का आम आदमी
आज का आम आदमी लगता है,
कुछ भटका- भटका सा ,
स्वअस्तित्व को भूलकर समूह नेतृत्व से प्रभावित, कुछ बहका- बहका सा ,
यथार्थ से अनिभिज्ञ कल्पना के वातावरण में विचरण करता हुआ ,
व्यक्तिगत स्वार्थ को सर्वोपरि रखते हुए,
जनहित को झुठलाता हुआ ,
वैचारिक स्वतंत्रता के स्थान पर समूह विचार से
प्रेरित आचरण करता हुआ ,
नीती एवं आदर्श को कपोल कल्पित धारणा प्रतिपादित करता हुआ ,
दया ,करुणा एवं मानवीय मूल्यों विहीन समाज की संरचना करता हुआ ,
दिग्भ्रमित, उन्नति के पथ से विचलित, अधोगति के पथ पर अग्रसर होता हुआ ,
निरर्थक जीवन निर्वाह को बाध्य,
अपने अस्तित्व को खोकर भविष्य को
अंधकारमय बनाता हुआ ।