आजादी दिवस उत्सव
प्राचीन हिन्दुस्तान की खुदाई में आज भी पुराने अभिलेख शिलालेख समृद्ध और “सोने की चिडिय़ा” कहे जाने वाला धरातल रहा है,
पृथ्वी का ऐसा भूभाग जो धन-धान्य और भौगोलिक सम्पदाओं का अपार भण्डारण रहा है, इसलिये भारत आक्रमणकारियों का गढ़ रहा होगा, इस बात से नकारा नहीं जा सकता,
डच, हूण, पुर्तगाली, मुगल, अंग्रेज मालूम नहीं कितने दृश्य अदृश्य व्यापारी हिंदुस्तान आये,
और अपना आधिपत्य जमाकर गुलाम बना लिया,
खैर !
कहानी आजादी दिवस उत्सव अगस्त 15, सन् 1947 की है, सफलता का आस्वादन वो ही कर सकते है, जो कभी सफल नहीं हुये.
छांव की जरूरत तपती धूप वाले को है.
पानी की कीमत, प्यास की उग्रता तय करती है.
हिंदुस्तान के लोग आजादी की लडाई तो लड रहे थे, लेकिन इसमें वर्चस्व आधार रहा है,
वर्ण-व्यवस्था और जातीय बंधन मुख्य कारण.
अफ्रीकी देशों में गोरे काले *रंगभेद के लिए लडाई लडने वाले,
अहिंसा परमो धर्म कहने वाले
अहिंसा के पुजारी कहे जाने वाले
महात्मा गांधी ने भी सीख नहीं ली.
और वर्ण और जातीय भेदभाव पर पर्दा डालने और आध्यात्मिक अनुभव महसूस कर जीवन यापन करें.
खैर लिखनी तो कहानी है.
लेख नहीं.
मेरी कहानी में पात्र,
काल्पनिक नहीं हैं,
ईस्ट इंडिया कंपनी का गठन दिसंबर 31, सन् 1600 में हुआ,
जिस समय मुगल अपना आधिपत्य के चरम पर थे, भारत रियासतों में बंटा हुआ था, और मुगल सम्राट अधिकतर अय्याशी में जीवन बिताना शुरू कर दिया था, और हिंदू शासक मुगलों से लडाई लड लडकर कमजोर हो चुके थे, या आपसी कूटनीति का शिकार हुए.
प्रथम स्वतंत्रता संग्राम जिसे अंग्रेजों ने *गदर का नाम दिया, असफल रहा, त्यां त्यां टोपे,, झांसी की रियासत से लडी मर्दानी *लक्ष्मीबाई को अन्य रियासतों से मदद नहीं मिली.
क्योंकि अंग्रेजों के फरमान थे, जिस भी रियासत के राजघराने में उत्तराधिकारी पुत्र नही रहेगा,
उस रियासत का स्वतः अंग्रेजों के राज्य का हिस्सा बन जायेगा.
यही झांसी और पंजाब के साथ हुआ.
किसी तरह अंग्रेजों ने इस आजादी के आंदोलन को कुचल दिया, कामयाब नहीं होने दिया,
दिसंबर 28, सन्1885 में एक अंग्रेज ए.ओ.ह्यूम/ एलेन ऑक्टावियन वा दादा भाई नौरोजी वा दिनशा वाचा, ने भारतीय कांग्रेस का गठन किया, और अंग्रेजों के सामने अपने प्रस्ताव रखने शुरू किए.
कांग्रेस में दो गुट बन गए.
एक नरम दल जिसके अग्रणी नेता महात्मा गांधी रहे.
दूसरा गरम दल जिसमें मुखत: लाल-बाल-पाल
लाला लाजपत राय/बाल गंगाधर तिलक/विपीन चंद्रपाल अग्रणी नेता थे.
1919 में जलियांवाला बाग हत्याकांड एक बार हिंदुस्तान की नींव हिलाकर रख दी.
इस कांड के विरोध में उभरे देश के सपूत
उधमसिंह
चंद्रशेखर
भगतसिंह
राजगुरु
बिस्मिल ने देश को आजादी की मध्यम चाल को तेज कर दिया.
आजाद हिंद फौज के नायक सुभाष चन्द्र बोस ने अपने सैनिकों के साथ,, अंग्रेजी शासन की जड़े हिलाने का काम किया.
मुस्लिम लीग जैसे संगठन सामने आये.
और यह सिद्ध कर दिया.
भारत आजादी के लिए नहीं,
बल्कि वर्चस्व की लडाई लडता रहा.
पाकिस्तान और बांग्लादेश
इसके सबूत है.
कश्मीर, मैसूर, हैदराबाद रियासत विलय न कर पाना,
क्षेत्रफल में तीनों बडी रियासत रही,
शक को और गहरा देता है.
भारत में लोकतंत्र स्थापित हुआ,
एक अंतरिम सरकार का गठन हुआ.
अंग्रेजी हुकूमत के आखरी वायसराय लार्ड माउंटबेटन ने जब आजाद भारत की हालात देखी. आखिरी समय में बहुत मदद की.
नरसंहार हुआ.. घोषणा के बाद.
इसलिये इस उत्सव को महोत्सव कहने में झिझक है.
फिर भी सभी विवादों के बाद
आखिरकार आजाद मुल्क का नाम पडा भारत.
आज फिर उसी राह पर.
बडे धूमधाम से मनाया जाता है.
प्रधानमंत्री का लाल किले से भाषण और उपलब्धियों को धरातल पर साक्षात दर्शन करवाया जाता है.
संविधान इस देश की रक्षा करे !!!