आजादी के बाद
आजादी के सपने टूटे, आजादी के बाद।
जलीं बस्तियाँ धू धू करके, किसका कहें कसूर।
जाति धर्म के फोड़े फुंसी, बन बैठे नासूर।।
जितना मरहम मला घाव पर, उतनी पड़ी मवाद।
लड्डू की थाली पर कुत्ते, रक्षक बन मुस्तैद।
न्यायधीश बन बगुलों ने सब, हंस कराये कैद।
गद्दारों की देश में अपने, रोज बढ़ी तादाद।।
आपस में बतियाये दिन भर, खेत और खलिहान।
बेचारा किस्मत का मारा, कितना “दीप” किसान।।
लगा पंक्ति में रहा दिवस भर, मिला न लेकिन खाद।
प्रदीप कुमार “दीप”
सुजातपुर, सम्भल