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6 Jul 2022 · 1 min read

आजकल

रिश्ते को संजोकर रख लिए है आजकल
परिवार में वैसे कुछ फासले हैं आजकल
आदमी से आदमी का अब कोई बंधन न टूटे
बाँटते फिर रहें हैं प्यार फिर हम आजकल
अकेला आदमी कैसे अपने घर को जाए
बिन वृक्ष के भला वो कैसे छाँव पाए
स्वर्ग की चाहत लिए ग़र निकल पड़ा है
मुमकिन है के पहले वो अपने गाँव जाए
-सिद्धार्थ गोरखपुरी

Language: Hindi
1 Like · 124 Views
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