आचार संहिता लगते-लगते रह गई (हास्य कथा)
आचार संहिता लगते-लगते रह गई (हास्य कथा)
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श्रीमती जी हाथ में पर्स लेकर जैसे ही घर से बाहर जाने को हुईं, हमने उन्हें टोका और कहा “अब यह सब नहीं चलेगा । आचार संहिता लग गई है “। वह बोलीं ” क्या मतलब ?”
हमने का “वही मतलब है, जो आचार संहिता का होता है अर्थात पहले बताना पड़ेगा कि आप बाजार किस काम से जा रही हैं ?”
वह बोलीं” नई साड़ी खरीदनी है।”
हमने चुनाव आयोग के सख्त लहजे में कहा ” कोई भी नया कार्य शुरु करने की अनुमति आचार संहिता लगे रहने पर दिया जाना संभव नहीं है । ”
वह काफी देर तक हमारा चेहरा देखती रहीं और उस कानूनी भाषा को पकड़ने का प्रयत्न करती रहीं, जिसमें हमने अपने वाक्य कहे थे। फिर बोलीं” सीधी- सीधी बात कहो कि साड़ी खरीदने के रुपए नहीं दोगे?”
फिर कहा” लेकिन उधार में तो ला सकते हैं । रुपए बाद में दे देना”।
हमने कहा “यह भी संभव नहीं है । किसी भी प्रकार के कोई वायदे अथवा घोषणा पर भी प्रतिबंध है।”
फिर हमने उन्हें आचार संहिता का अर्थ समझाया और कहा कि घर में पत्नी को किसी भी प्रकार से प्रलोभन देकर लुभाना आचार संहिता के अंतर्गत मान्य नहीं है। रूखा – सूखा जैसा चल रहा है वैसे चलता रहेगा । न पिकनिक पर जाना स्वीकार है,न किसी होटल में खाना खाने के लिए जाने की अनुमति होगी।”
श्रीमती जी बोलीं” ब्यूटी पार्लर तो जा सकते हैं?”
हमने कहा ” नहीं। आचार संहिता में किसी भी नये कार्य की मनाही है । ”
पूरे घर में कुछ सैकिंड के लिए उदासी छा गई। फिर श्रीमती जी बोलीं ” ठीक है । अब तक तुमने अपनी आचार संहिता लगाई ,अब मेरी भी आचार संहिता सुनो ।”
हम चकराए। हमने कहा ” आपकी आचार संहिता क्या होती है ?”
वह बोलीं ” जितना खाना घर में बना हुआ है ,वह बैठकर मैं और आप खा सकते हैं, लेकिन अब आगे से कोई खाना नहीं बनेगा। जिसको जो खाना है वह स्वयं बनाए। आचार संहिता के अंतर्गत पत्नी द्वारा पति को खाना बनाकर नहीं दिया जाएगा।”
सुनते ही हमारे होश उड़ गए। हमने युद्ध विराम के लहजे में कहा” भाग्यवान ! हम तो केवल मजाक कर रहे थे । दरअसल घर के अंदर आचार संहिता न कभी लगी है और न लगेगी ।”
श्रीमती जी मुस्कुरा दीं। कहा” अब लाइन पर आए । आपकी आचार संहिता में हूँ और मेरी आचार संहिता आप हैं । चुनाव तो आते-जाते रहेंगे।” हम भी मुस्कुरा दिये। वह दिन है और आज का दिन है, हम फिर कभी भूल कर भी आचार संहिता का शब्द अपनी जुबान पर नहीं लाए। इस तरह आचार संहिता लगते-लगते रह गई।
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लेखक ः रवि प्रकाश, बाजार सर्राफा,
रामपुर ,उत्तर प्रदेश मो.9997615451