आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी
महान मूर्धन्य विद्वान से सुसज्जित
हुआ हिन्दी साहित्य का प्रांगण।
जब १९अगस्त सन् १९०७ को
दुबे का छपरा ग्राम बलिया में पुत्र
जन्मा अनमोल ज्योति जी के आंगन।
आचार्य हजारी प्रसाद जी थे
सर्वतोन्मुखी प्रतिभा के धनी।
आपके संवर्धन से हिन्दी साहित्य
शब्द – संपदा अद्भुत बनी।
थे वह उपन्यासकार, निबन्धकार
और थे समालोचक, साहित्य कार।
आपकी सत्प्रेरणा से हिन्दी साहित्य
ने पाया अद्वितीय, अप्रतिम रूप अनूप।
आपके सर्वतोन्मुखी उत्कृष्ट सृजन से
हिन्दी गद्य जगत को दिया प्रांजल रूप।
”नाखून क्यों बढ़ते हैं,” “देवदारू”
“कुटज” या हो “अशोक के फूल”।
”आम फिर बौरा गये” अथवा
चाहे पढ़ें हम “शिरीष के फूल”।
”बाणभट्ट की आत्मकथा” उठाइये
या “पुनर्वास” “चारु चन्द्र लेख” हो।
या हो “अनामदास का पोथा”
हर एक कृति में मिलता भाव अनोखा।
पद्मभूषण टैगोर पुरस्कार और साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित।
दैदीप्यमान नक्षत्र रूप में हिन्दी के साहित्याकाश में आप थे प्रकाशित।
19 मई सन् 1979 का दिवस अभागा
जब इस प्रकांड पंडित ने नश्वर शरीर त्यागा।
अश्रुपूरित श्रद्धा प्रसूनों से करते हम
इस महान विभूति को शत-शत नमन्
हिन्दी साहित्य उद्यान ने खो दिया
एक अनूठा साहित्य सुमन।
रंजना माथुर
जयपुर (राजस्थान)
मेरी स्व रचित व मौलिक रचना
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