आचरण
आचरण व्यक्तिगत होते हैं,
या सार्वजनिक.
गर सार्वजनिक होते है तो.
धर्म हाशिये पर आ जाते है.
फिर निसर्ग महत्वहीन.
और
निसर्ग ही महत्वहीन हो जाये.
फिर मानव हित में सब खोजे
निरर्थक !!!
आस्तिक/धार्मिक
करुणा/प्रेम/दया/अहिंसा मनुष्य करके ही अनुभव को प्राप्त होता है,
तो चर्च/मंदिर/दरगाह सब व्यर्थ.
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डॉक्टर महेन्द्र सिंह हंस