आग पानी में लगाते क्यूँ हो
आग पानी में लगाते क्यूँ हो
घर शरारों पे बनाते क्यूँ हो
उम्र भर साथ चलोगे मेरे
मुझको जन्नत ये दिखाते क्यूँ हो,
दो घड़ी ही तो पास बैठे थे
इतना एहसान जताते क्यूँ हो,
मुझको तुम प्यार बहुत करते हो
झूठ को सच सा बताते क्यूँ हो,
शाम को देर से घर आओगे
पूछने पर ही बताते क्यूँ हो,
खर्च करना ही नहीं था जब तो
रात-दिन मर के कमाते क्यूँ हो,
किसने देखा है यार मुस्तक़बिल,
अपना सिर इसमें खपाते क्यूँ हो,
घर के लोगों से हीं तो घर, घर है
हीरे-मोती हैं ये,इनको गवाते क्यूँ हो,
तानेबाज़ी से,शिकायत से,तल्ख लहज़े से
प्यार की लंबी उम्र को यूँ घटाते क्यूँ हो,
सबकी मुट्ठी में सबके आस्मां हैं
अपनी शर्तों पे ही दुनिया को चलाते क्यूँ हो,
क्या मेरा हक़ नहीं कोई तुम पर
मुझसे हर बात छिपाते क्यूँ हो।