आखिर क्यों
लेखक डॉ अरूण कुमार शास्त्री
भाषा हिंदी
विषय वो लम्हें
शीर्षक आखिर क्यों
वो लम्हें जो सुखदायक होते हैं बीत जाते तत्परता से आखिर क्यों ?
वो लम्हें जिन्हें नहीं चाहते हम भुलाना भूल जाते हैं अनभिज्ञता में, आखिर क्यों ?
वो लम्हें जो दुखदायक होते हैं नहीं बीतते लाख कोशिशों के बाद भी,आखिर क्यों ?
ये जिन्दगी एक पहेली सी क्षमता ममता की ख़ोज में समर्पित है ।
प्रेम प्यार चाहते हम सभी लेकिन मिलती जुदाई और बिचोह है।
वो लम्हें जो पीड़ादायक देते हैं सताते सालों साल ही आखिर क्यों ?
कौन किसका मददगार है और कौन किसका हाथ पकड़ कर ले चलेगा पार ।
ऐसे अनगिनत सवालों में उलझा रहता है ये जीवन जी रहे हम सभी ।
यदि मालूम है आपको तो समझा देना इस अबोध बालक को भी ऋणी रहूंगा जिंदगी के साथ और जिन्दगी के बाद भी।
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