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10 Oct 2021 · 1 min read

आखिर किसान हूँ

दबा कर मेरी आवाज को
मुझे ख़त्म नही कर पाओगे
आखिर किसान हूँ
बीज की तरह दबकर
उगना जानता हूँ
झेल लूंगा तुम्हारी तानाशाही को
मौसम की मार जैसा,
जितना सताओगे
बनकर पेड़, सहकर जुल्म
अपने फल को पाना जनता हूँ

Language: Hindi
2 Likes · 1 Comment · 301 Views
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