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11 Sep 2022 · 1 min read

आखिरी स्टेशन (लघुकथा)

आखिरी स्टेशन (लघुकथा)
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सेठ गोवर्धन दास ट्रेन में यात्रा कर रहे थे ।तभी अचानक सहयात्री ने सामान बाँधना शुरू कर दिया। सेठ जी को बहुत आश्चर्य हुआ। कहने लगे “क्यों भाई ! ट्रेन तो चल रही है । कहीं रुकी भी नहीं है । अभी से सामान क्यों बांध रहे हो ? क्या तुम्हारा स्टेशन आने वाला है ?”
वह बोला” हां सेठ जी ! अब अगला स्टेशन मेरा ही है ।”
“तो जब स्टेशन आए , तब सामान बाँध लेना ,उतर जाना ।”
सहयात्री हँस पड़ा । “सेठ जी ! जब स्टेशन आ जाता है ,तब सामान बाँधने का समय नहीं मिलता। स्टेशन पर उतरने की तैयारी तो पहले से ही करनी पड़ती है ।”
बात तो साधारण थी लेकिन सेठ जी सोच में पड़ गए । बोले ” एक स्टेशन पहले से तुमने अपना सामान बाँधना शुरू कर दिया और अगर यह पता न हो कि हमारा स्टेशन कब आ जाएगा ,तब सामान कैसे बाँधें?”
सहयात्री मुस्कुराने लगा और बोला “इसमें कौन सी बड़ी बात है। हर समय सामान बांध कर तैयार रहो ।जब अपने स्टेशन पर गाड़ी रुके , तब उतर जाना । ”
सेठ जी ने सहयात्री को हाथ जोड़कर प्रणाम किया और बोले” मैं तो सारा जीवन खाने कमाने में ही लगा रहा और जिंदगी की गाड़ी कब आखिरी स्टेशन पर आकर रुक जाए , इस बारे में कभी सोचा ही नहीं । तुमने मेरी आँखें खोल दीं। आज की तारीख में तुम मेरे गुरु और मैं तुम्हारा शिष्य हूँ।”
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लेखक: रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा
रामपुर( उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 9997 61 5451

Language: Hindi
138 Views
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