आखरी शख़्स हो क्या
ये तुम इतने खुशफ़हम से क्यूं हो
दीलजोई को तुम आखरी शख़्स हो क्या?
मेरे दिल के दहलीज पे जो धड़का हुआ
तुम आज कल मुझ से ख़फ़ा ख़फ़ा हो क्या
जो सच है ये तो कुछ दिन और ख़फ़ा ही रहो
बाद मेरे मुझ पे मिट्टी डालने के हक में नहीं हो क्या?
~ सिद्धार्थ