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14 Nov 2022 · 15 min read

आकर्षण

आकर्षण-

महाकाल युवा समूह ने कुम्भ मेले में आने वाले श्रद्धालुओं के लिए खान पान भंडारे एवं स्वास्थ्य की व्यवस्था कि जिम्म्मेदारी लिया और महादेव परिवार ने कुम्भ मेले में साफ सफाई की व्यवस्था जिम्म्मेदारी में प्रशासन के सहयोग के लिए संकल्पित दोनों ने अपनी अपनी कार्य योजनाएं जिलाधिकारी उज्जैन के समक्ष प्रस्तुत किया ज़िला अधिकारी उज्जैन ने महादेव परिवार एव महाकाल युवा समूह कि योजनाओं को स्वीकृत कर लिया।

कुभ्म मेले में सहयोगियों की सेवाओं की प्रस्तावित योजनाओं पूर्वाभ्यास के शिविरो का आयोजन शुरू हुआ जिला प्रशासन एव मेला प्रशासन ने संयुक्त रूप से अपनी कार्य योजना को धरातल पर प्रतुतत किया एवं सहयोगियों की योजनाओं की योजनाओं के प्रस्तुतिकरण को देखा देखने के बाद मेला प्रशासन एव जिला अधिकारी दोनों स्तरों से महाकाल युवा समूह एवं महादेव परिवार द्वारा प्रस्तुत कार्य योजनाओं को मंजूरी मिल गयी ।

इंतज़ार था तो महाकुंभ मेले के शुभारम्भ का नियत समय पर कुम्भ मेले का शुभारम्भ हुआ महाकाल युवा समूह एव महादेव परिवार द्वारा मेले की साफ सफाई की इतनी शानदार व्यवस्था कर रखी थो की आने वाले तीर्थ यात्रियों को लगता ही नही की वह भारत के किसी मेले में आये है उन्हें इस तरह की उम्मीद कत्तई नही थी इसी प्रकार महाकाल युवा समूह ने स्वास्थ्य एवं भंडारे से संबंधित अपनी कार्य योजना के अनुसार सर्वोत्तम व्यवस्था अपने स्वंय सेवको के माध्यम से स्थापित कर रखी थी।

महादेव परिवार एव महाकाल युवा समूह के सहयोग ने मेले के रौनक को बढ़ा दिया सनातन धर्म में हर प्रबृत्ति के व्यक्ति के पूजन आराधना का मार्ग निर्धारित किया गया है ।

सनातम ही एक ऐसा धर्म है जिसमे बाम मार्ग एव दक्षिण मार्ग दोनों ही पूजा आराधना पद्धतियां है बाम मार्ग उनके लिए निर्धारित है जो अपने इन्द्रिय सुखों का आकर्षण को छोड़ नही सकते है जैसे बहुनारी गामी मदिरा पान मांशाहार जो भी करने से मन संतुष्ट हो करते हुए ईश्वर को प्राप्त करने की आराधना अघोर एवं औघड़ सनातन के बाम मार्ग आराधना की पद्धति है।

दक्षिण मार्ग में गृहस्थ, शाकाहारी एव मदिरा आदि का सेवन ना करने वालो के लिए है बाम मार्ग में केवल शक्ति की उपासना की जाती इस पद्धति में काली कालभैरव आदि की आराधना प्रमुख है दक्षिण में शैव एव वैष्णव दो विशिष्ट आराधक होते है शैव आराधना पद्धति कठिन एव जटिल है शिव आराधक अधिकतर फक्कड़ एव अविवाहित रहते है जबकि वैष्णव विवाहित गृहस्थ होते है ।

शैव उपासना स्थलों पर भारतीयों के अलावा विदेशी उपासकों की संख्या नगण्य या ना के बराबर ही रहती है जबकि वैष्णव उपासक विदेशी भी अधिक है इसका कारण है प्रभु पाद जी द्वारा कृष्ण भक्ति को देश विदेश में प्रचारित कर स्थापित किया गया जबकि शिव आराधकों द्वारा इस प्रकार के प्रायास किये गए हो कही साक्ष्य नही मिलता परिणामः विदेशी भक्तों की भीड़ मथुरा द्वारिका पूरी आदि में दिखती है काशी में जो विदेशी आते है वो बुद्ध के उपदेश स्थल सारनाथ के कारण दिखते है विश्वनाथ जी का दर्शन करते यदा कदा ही दिख जाते है स्प्ष्ट है शिव स्थानों पर भारत के अलावा विदेशी भक्त नही होते या होते भी है तो एक आध कभी कभार यही कारण है कि शिव स्थान के कुम्भ मेलो में विदेशी भक्त नही आते सैलानी आते है।

दूसरा प्रमुख कारण है शिव तीर्थ स्थल दुर्गम स्थानों पर शांत एवं हरित प्रदेशों में ही है जहां की यात्रा मात्र कोई भी शिव भक्ति के लिए ही कर सकता है जबकि वैष्णव देव स्थान पर्यटन स्थलों पर स्थित है जैसे पूरी द्वारिका मथुरा अयोध्या बाला जी आदि आदि शिव के स्थान है केदानाथ, मल्लिकार्जुन, भीमा शंकर ओंकरेश्वर आदि दुर्गम एवं जोखिम यात्राओं के बाद ही पहुंचना संभव है कुछ स्थान अवश्य शिव केन्द्र है जो अब नगरीय है जैसे महाकाल,काशी,नासिक आदि यही वास्तविकता कमोवेश देवी आराधना की भी है।

उज्जैन कुम्भ शुरू हुए जो प्रथम स्नान से प्रारम्भ होकर सातवे पवित्र स्नान तक चलना था जिला प्रशासन एव मेला प्रशासन ने सराहनीय जन सहयोग एव भागीदारी से आत्म संतोष की सांस ली मेले में सभी अखाड़े स्नान हेतु आये थे सबके अपने अपने पड़ाव थे ।

धीरे धीरे प्रथम स्नान कि तिथि आ गयी प्रथम स्नान के दिन ही जिला प्रशासन एवं मेला प्रशासन के लिए चुनौती थी नागा साधु शाही स्नान के लिए अड़े थे तो दसनामी अखाड़ा अलग जिद किये हुए था दोनों किसी सर्वमान्य हल के लिए तैयार नही थे बड़ी मुश्किल से दोनों अंखांडो को एक साथ आस पास के घाटों में स्नान की अनुमति मिली एवं समस्या का समाधान निकला।

आशीष नित्य चलने वाले कुम्भ मेले में महाकाल की भस्म आरती के बाद अपने कार्य मे जुट जाता श्रद्धालुओं को कोई परेशानी न हो इसके लिए महाकाल युवा समूह के युवा सेना के साथ सुबह से शाम ,शाम से रात चौबीसों घण्टे जुटा रहता श्रद्धालुओं के खान पान एवं स्वस्थ व्यवस्थाओं के समुचित संचालन के लिए भंडारे एवं स्वस्थ शिविरों कि व्यवस्था थी जिसमे निःशुल्क भोजन वितरण एवं रोगी के लिए निशुल्क व्यवस्था थी।

इधर महाकाल का महादेव परिवार देव जोशी जी एवं त्रिलोचन महाराज कि देख रेख में कुम्भ मेले की साफ सफाई की व्यवस्था की जिम्मेदारियों का निर्वहन बाखूबी करते जा रहे थे महादेव परिवार एव महाकाल युवा समूह की व्यवस्थाओं से श्रद्धालुओं को बहुत संतुष्टि थी प्रत्येक श्रद्धालु उज्जैन कुम्भ मेले की व्यवस्था से आल्लादित एव संतुष्ट था।

कुम्भ मेला निर्वाध रूप से शांति एव शौहर्द पूर्ण बातावरण में चल रहा था किसी को कोई शिकायत नही थी उज्जैन प्रशासन भी अपनी उपलब्धियों पर संतुष्ट था मध्य प्रदेश की सरकार भी इतने बड़े आयोजन के सफलता एव शांतिपूर्ण तरीके से चलने से अपनी प्रसाशनिक व्यवस्थाओं एव संवैधानिक दायित्वो से संतुष्ट थी ।

तत्कालीन मुख्यमंत्री कैलाश जोशी स्वंय उज्जैन आये साथ ही साथ देश के बहुत से गण मान्य राष्ट्रीय स्तर के उज्जैन कुम्भ के दौरान आये सभी के द्वारा मुक्त कंठ से कुम्भ आयोजन में प्रेदेश सरकार एव जिला प्रशासन की शानदार व्यवस्थाओं एव प्रभवी सक्रियता से प्रशंसा करते साथ ही साथ महादेव परिवार एव महाकाल युवा समूह के सहयोग के प्रति आभार व्यक्त करते।

सब कुछ शांतिपूर्ण तरीके से चल रहा था कही से किसी व्यवधान की आशंका दूर दूर तक नही थी उज्जैन का कुंभ मेला निर्वाध गति से चल रहा था कहते है न की जब तक शुभारंभ का शुभ समापन ना हो जाये तब तक शुकुन नही मिलता ।

उज्जैन एव ईन्दौर के रास्ते कुम्भ आयोजन स्थल से लगभग पच्चीस तीस किलोमीटर दूर एक गांव के आपसी रंजिश में मारपीट शुरू हो गयीं विवाद इतना अधिक बढ़ गया कि एक व्यक्ति की मृत्यु हो गयी पूरे गांव में अफरा तफरी मच गई गांव के जिस पक्ष के घर के युवक ने आपसी विवाद में जान गंवाई थी उसके परिवार एव उसके समर्थकों ने कुम्भ आने वाले मार्ग को ही अवरुद्ध कर दिया और सड़क पर उधम मचाने लगे।

कुछ देर के लिए इतना अराजक वातावरण हो गया कि सब कुछ अस्त व्यस्त हो गया कुंछ शरारती तत्व जो इस तरह के अवसर की तलाश में रहते है मौके का लाभ उठाकर अराजकता को हवा देते है इंदौर से उज्जैन जाने वाली सड़क जाम थी उसी में कुछ शरारती तत्वों ने पथराव कर दिया जिससे अवरुद्ध मार्ग पर खड़ी एक बस की खिड़की का शीशा टूट गया और जोरदार पत्थर बस में बैठी यशिका जो जापानी पर्यटन थी के सर पर लगी जिसके कारण उसके सर पर बहुत गंम्भीर चोट आई ।

उज्जैन पुलिस ने सक्रियता से अवरुद्ध मार्ग को खुलवाया और विवाद को सुलझाने में त्वरित आवश्यक कार्यवाही करते हुए गांव के विवाद के सभी पक्षो के विरुद्ध आवश्यक कार्यवाही किया इधर याशिका को चिकित्सा हेतु उज्जैन के जिला अस्पताल में भर्ती करवाया याशिका के सर पर बहुत गम्भीर चोट आई थी जिसके लिए उसे अस्पताल में कुछ दिन रहना पड़ा ।

इधर दिन रात कुम्भ मेले की जिम्मेदारियों के निर्वहन में आशीष की नियमित दिन चर्या में व्यवधान के कारण वह अस्वस्थ होने लगा पहले तो साधारण बात समझ कर मेडिकल स्टोर से दवाएं लेकर खा लेता या आर्युवेद के नुस्खे आजमाता लेकिन उसका स्वस्थ विगड़ता ही गया अंततः जब उसकी स्थित बहुत गम्भीर हो गयी तब देव जोशी जी त्रिलोचन महाराज एव सतानंद जी उसे उज्जैन के जिला अस्पताल लेकर गए चूंकि आशीष की ख्याति बाल गोपाल के रूप में थी और उज्जैन में हर व्यक्ति उंसे सम्मान कि दृष्टि से देखता था अतः अस्पताल के डॉक्टरों द्वारा आशीष की गम्भीरता से जांच करने के बाद बताया गया उसे इन्सटेस्टाइन इंफेक्शन है जिसके कारण बुखार एव अन्य समस्याए है अतः उंसे अस्पताल में भर्ती होना अनिवार्य है ।

आशीष के ना चाहते हुए भी उंसे उज्जैन के जिला अस्पताल में भर्ती होने पड़ा आशीष का इलाज शुरू हुआ उसी अस्पताल के दूसरे वार्ड में याशिका सर में गम्भीर चोट के इलाज के लिए भर्ती थी।

एक सप्ताह बाद आशीष के स्वास्थ में सुधार दिखने लगा आठवें दिन ,दिन में लगभग दोपहर के समय बहुत जोरो से चिल्लाने लगी चिल्लाने की आवाज बहुत तेज थी और चिल्लाते समय जापानी भाषा मे कुछ बोलती जा रही थी जो भी आस पास के वार्डो के मरीज अपने बेड से उठकर थोड़ा बहुत चहल कदमी कर सकते थे उसमें आशीष भी था उसने देखा कि कोई विदेशी महिला चिल्ला रही है स्टाफ नर्स उसकी भाव भंगिमाओं से कुछ समझने का प्रायास कर रही थी भाषा तो उसे समझ नही आ रही थी डॉक्टर सुबह ही राउंड पर आए थे और तब उसे कोई विशेष समस्या नही थी एक स्टाफ नर्स डॉक्टर को याशिका की स्थिति को डॉक्टर से रिपोर्ट करने गयी थी ।

तभी आशीष याशिका के पास पहुंचा और उसकी समस्या को समझने की कोशिश करने लगा तभी याशिका ने उसका हाथ पकड़ कर और तेज चिल्लाने लगी तब तक डॉक्टर आ चुके थे और उन्होने स्टाफ नर्स को याशिका के सर के घाव की जांच करने के उपरांत बतया की सर पर लगे टांके टूट गए है और खून का रिसाव हो रहा है अतः माइनर ओटी में ले जा कर स्ट्रिचिंग करनी होगी तुरंत याशिका को लेकर स्टाफ नर्स ओटी की तरफ जाने लगा तभी उसने आशीष की तरफ इशारा करते हुए कुछ कहने की कोशिश कर रही थी जिसे समझ पाना स्टाफ नर्सो के लिए मुमकिन नही था स्टाफ नर्सों ने आशीष से अनुरोध के लहजे में कहा सर आप ओटी तक चले शायद मरीज का आपकी तरफ इशारे का मतलब यही हो आशीष जब स्ट्रेक्चर के साथ चलने लगा तब वास्तव में याशिका ने इशारा करना बंद कर दिया याशिका जब ओटी में जाने लगी आशीष बाहर खड़ा हो गया फिर याशिका ने उसकी तरफ इशारे करने लगी स्टाफ नर्स ने डॉक्टर गिरधर से बताया सर मरीज बाहर खड़े बगल वार्ड के मरीज आशीष की तरफ इशारे से कुछ कहना चाहती है डॉक्टर ओटी से बाहर निकले और याशिका की मनः स्थिति को समझते हुए आशीष को याशिका के साथ ओटी के अंदर आने की इजाज़त यह कहते हुए दे दी कि कोई मेजर सर्जरी की बात तो है नही रिस्टिचिंग ही तो करनी है अतः आशीष को याशिका के साथ आने दो आशीष याशिका के साथ माइनर ओटी में गया डॉक्टर गिरधर ने कुछ ही देर में टूटे स्टिचिंग को निकाल कर रिस्टिचिंग कर ड्रेसिंग कर दिया इस पूरी प्रक्रिया के दौरान याशिका का ध्यान आशीष के तरफ ही था जैसे उसे किसी दर्द का एहसास ही न हो डॉ गिरधर ने कहा मिस्टर आशीष यदि आप अन ईजी ना फील करे तो कुछ समय यशिका को दे शायद यह फ़ास्ट रिकवर करे ।

आशीष को लगा जैसे डॉक्टर गिरधर मजाक कर रहे है उसने कहा महाकाल के उज्जैन में और कण कण में रहते हुए मेरी क्या विशात डॉ गिरधर ने पुनः गंभीर होते हुए कहा नही मैं कोई मज़ाक नही कर रहा हूँ (थिस इस सीरियस ट्रुथ )आशीष याशिका के स्ट्रेचर के साथ निकला और अपने वार्ड में चला गया उधर यशिका को ट्रंकुलाइजर दिए जाने के कारण गहरी नींद में सो गई ।

देव जोशी जी सतानंद एव त्रिलोचन महाराज कुम्भ मेले की जिम्मेदारियों से समय निकाल कर अस्पताल आशीष से मिलने आते रहते ।

आशीष ने सभी से याशिका के विषय मे चर्चा करता रहता सभी ने यही सलाह आशीष को दिया कि उसे याशिका से कभी कभार जा कर उसके वार्ड में मिलना चाहिये आखिर उसका यहां कौन हैं ही बेचारी आयी थी भारत भ्रमण पर मगर बेवजह परेशानी में फंस गई इसमें भी महाकाल की कोई इच्छा हो ।

आशीष को जब भी लगता वह बेहतर है याशिका के वार्ड में जाता आशीष भी जापानी भाषा तो जनता नही था और यशिका हिंदी अंग्रेजी नही जानती थी अतः दोनों एक दूसरे के इशारों को ही समझते और समझने की कोशिश करते ।

धीरे धीरे एक सप्ताह बीत गए और आशीष विल्कुल स्वस्थ हो चुका था उंसे डॉक्टरों ने अस्पताल से छुट्टी दे दी जाने से पूर्व वह याशिका से मिलने गया याशिका ने कहा हीरो आते रहना याशिका सिर्फ आशीष को हीरो का सम्बोधन ही बोल पाती जो उसने ही आशीष को नाम दे दिया था ।

आशीष महाकाल आया तो ऐसा लगा जैसे रौनक लौट आयी देव जोशी त्रिलोचन महाराज सतानंद सभी ने आशीष के स्वस्थ होकर लौट आने पर महाकाल का आभार व्यक्त किया और एक सप्ताह महाकाल की विशेष कृपा के लिए आशीष को भस्म आरती करने के लिये अधिकृत किया।

आशीष अपने जिम्मेदारियों में व्यस्त हो गया दो तीन दिन बाद अस्पताल में याशिका ने हीरो हीरो कहती चिल्लाने लगी स्टाफ नर्स उदिता ने डॉक्टर मधुकर को बताया कि सर याशिका हीरो हीरो कह कर जोर जोर से चिल्ला रही है डॉ मधुकर ने कहा कि मेडिकल साइंस हीरो कहा से लाये हीरो कोई मेडिसिन भी नही है सिस्टर उदिता ने डॉ मधुकर को बताया कि याशिका हीरो बगल वाले वार्ड में भर्ती और तीन चार दिन पहले डिस्चार्ज मरीज को कहती थी उसे बुलवाया जाय सर एक तो याशिका जापान की रहने वाली है यदि उसे कोई वेवजह परेशानी उज्जैन एव देश की बेइज्जती है अतः आशीष को कम से कम एक बार बुलाया जाय डॉ मधुकर ने बहुत हल्के अंदाज़ में कहा ठीक है किसी को भेज कर बुलवा लो ।

सिस्टर उदया ने वार्ड ब्याय करीम को आशीष को बुलाने के लिए भेजा करीम महाकाल गया और देव जोशी जी से वास्तविकता बताई जोशी जी ने त्रिलोचन जी एव सतानंद जी से जोशी जी ने आशीष को बुलाया और लगभग आदेश देने के लहजे में कहा कि वह फौरन अस्पताल जा कर याशिका से मिले आशीष जोशी जी की बात नही टाल सकता था अतः वह रहीम से कहा आप चलो मैं आता हूँ।

आशीष अस्पताल यशिका के वार्ड में गया यशिका ने जैसे ही आशीष को देखा वह ऐसे शांत हुई जैसे कुछ हुआ ही ना हो डॉ मधुकर को देखकर बहुत आश्चर्य हुआ पीछे से आये और आशीष के कन्धे पर हाथ रखते हुए बोले हेलो यंग मैन मैने कहा था कि आप आते रहिएगा आप नही माने देखिए आपके आने से मरीज कितना पजीटिव रेस्पॉन्स कर रहा है अब आप आते रहिये याशिका सम्भव है बहुत जल्दी रिकवर कर जाए।

आशीष याशिका के पास बहुत देर तक बैठा रहा और नियमित आने लगा याशिका के पास आते जाते कुछ हिंदी के शब्द आशीष ने याशिका को सीखा दिए थे जैसे नमस्कार आप कैसे है आदि आशीष के आने जाने से याशिका के स्वभाव गम्भीरता एव चित्त शांत रहता और निश्चिन्त भाव का आत्म विश्वास झलकता ।

आशीष के आने से जाने से याशिका का आशीष के प्रति वर्ताव में अपनापन झलकता आशीष तो शिव भक्ति के संत परम्परा का व्यक्ति था उसके लिए मानव मात्र में शिव दिखता और उसी नियत सेवा भाव से सबके लिए सामान भाव से समर्पित रहता उसके लिए याशिका शिव कृपा से शिव भक्त गण के अतिरिक्त कुछ नही थी ।

आशीष इसी नियत से याशिका के बेहतर स्वास्थ्य के लिए आता याशिका खुश रहती उसके सर का घाव धीरे धीरे ठीक होने लगा सर के अंदर खून के जमे थक्के भी समाप्त होने लगे थे डॉक्टरो द्वारा गहन जांच के बाद याशिका को अस्पताल से शीघ्र छुट्टी दिए जाने की संभावना थी ।

चूंकि मामला विदेशी नागरिक का था वह भी जापानी नागरिक का अतः सरकार एव प्रशासन द्वारा भी खासा ध्यान दिया गया क्योकि जपान के साथ भारत के सम्बंध ऐतिहासिक एव सांमजिक स्तर पर बहुत संवेदनशील एव सकारात्मक थे जो बुनियादी द्विय पक्षीय रिश्तों के मूल अवधारणा का सत्यार्थ था सरकार किसी स्तर पर कोई शिथिलता नही बरतना चाहती थी एक सप्ताह बाद यशिका की जांच डॉक्टरो द्वारा बहुत गम्भीरता के साथ किया गया सर की सकैनिंग कराई गई डॉक्टरों द्वारा पूरी तरह से संतुष्ट होने के बाद याशिका को अस्पताल से छुट्टी देने का निर्णय लिया गया और याशिका को अस्पताल से छुट्टी दे दी गयी अस्पताल से छुट्टी के दिन याशिका को लेने भी आशीष आया और कुछ दिन महाकाल रुकने के लिए अनुरोध किया।

याशिका को भी कुछ दिन रुकने में ही बेहतरी दिखी उंसे लगा कि यदि कोई समस्या रास्ते मे आ जायेगी तो बड़ी परेशानी होगी अतः कुछ दिन रुकने से सर पर लगे चोट के कारण कोई समस्या तो नही आ रही है स्प्ष्ट हो जाएगा यदि सामान्य दिन चर्या में समस्या आयी तो पुनः इलाज किये डॉक्टर्स बेहतर देख भाल कर सकते है ।

याशिका ने आशीष के अनुरोध को स्वीकार कर लिया और महाकाल आशीष के साथ रुकने को तैयार हो गई आशीष याशिका को लेकर महाकाल आया और त्रिलोचन महाराज के ही विशेष कमरे में ठहरा दिया क्योकि बाकी कमरे उसके अनुरूप नही थे त्रिलोचन जी महाराज जी दूसरे कमरे में रहने लगे और अपना कमरा याशिका को दे दिया।

याशिका महाकाल आने के बाद महाकाल की दिनचर्य में घुल मिल गयी सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठना भस्म आरती में शरीक होना और शिव पुराण की कथा में बैठना उंसे बहुत कुछ समझ मे तो आता नही लेकिन कथा में श्रोताओं के हाव भाव से उनके साथ सम्मिलित रहती धीरे धीरे महाकाल के विशिष्ट अतिथि के रूप में वह महाकाल परिसर में मशहूर हो गयी उंसे हर महाकाल भक्त बहुत सम्मान देता उसकी विशिष्ट पहचान थी एक तो भारतीयों से अलग बनावट एव दूसरा शिव भक्ति की विशिष्ट विदेशी मेहमान।

महादेव परिवार एवं महाकाल युवा समूह के सदस्य भी उंसे अपनी यदा कदा की गतिविधियों में सम्मिलित करते लेकिन वह आशीष को हीरो ही कहती याशिका को महाकाल में रहते एक माह बीत चुके थे वह टूटी फूटी हिंदी अपने मतलब की बोलना सिख चुकी थी जो महाकाल युवा समूह ने उसे सिखाया था एक दिन सतानंद महाराज जी ने देव जोशी एवं त्रिलोचन महाराजा की उपस्थिति में पूछ ही लिया यशिका से महोदया आप हमारे आशीष को हीरो क्यो कहती है ?

याशिका हिंदी समझने लगी थी और कुछ जबाब बोलने भी लगी थी उसने बताया कि हीरो उंसे कहते है जो जीवन का विशेष आकर्षण एव प्रभवी हो और आशीष उसके लिये इसी श्रेणी में है इसीलिए वह उसे हीरो बुलाती है ।

याशिका महाकाल युवा समूह के साथ उनके ग्रामीण कार्यक्रमो में भी सम्मिलित होती और ग्रामीण युवाओं के लिए आकर्षण एव कौतूहल का विषय रहती याशिका महाकाल में एक तरह से पारिवारिक सदस्य हो गयी थी हिंदी भी बहुत स्प्ष्ट समझने लगी थी और ठीक ठाक बोलने भी लगीं थी उंसे महाकाल आये तीन माह हो गए थे और उसने अपने प्रवास के दौरान जापानी भाषा एव व्यंजनों को बोलना एव बनाना महादेव परिवार एव महाकाल युवा समूह के बहुत से लोंगो को सीख दिया था एक तरह से याशिका अकेले पूरे
जापान की राष्ट्रीय भवना राष्ट्रीयता का महाकाल का प्रतिनिधित्व करती प्रतिनिधि थी तो महादेव परिवार एव महाकाल युवा समूह एव समूचा उज्जैन भारतीयता एव भारत की संस्कृति संस्कार को साक्षात था ।

तीन महीने बाद जापनी एम्बेसी से महाकाल संदेश आया कि याशिका के माता पिता ने याशिका को शीघ्र पहुँचने का संदेश दिया है ।

महादेव परिवार एव महाकाल युवा समूह को लगने लगा था कि याशिका अब कभी जापान लौट कर नही जाएगी लेकिन उसे तो जाना ही था जब याशिका को जापानी दूतावास का संदेश प्राप्त हुआ तो वह जाने के लिए महादेव परिवार एव महाकाल युवा समूह से अनुरोध किया बड़े दुखी एव भारी मन से याशिका को जाने के अनुरोध को स्वीकार महाकाल के भक्तो ने याशिका को उज्जैन से दिल्ली और वहां से उसे जापान जाना था वह जाने को तैयार हुई लगभग पूरा महाकाल युवा समूह एव महादेव परिवार उंसे विदा देने के लिये एकत्र हुआ जैसे कि याशिका गौरी पुत्री गजानन कार्तिकेय बहन हो बड़े बोझिल अश्रुपूरित पारिवारिक भाव से महाकाल भक्तों ने याशिका के जाने की सच्चाई स्वीकारी याशिका ने महादेव परिवार एव महाकाल युवा समूह का आभार कृतज्ञता व्यक्त किया और हीरो आशीष के पास जाकर बोली समझे हीरो ,हीरो का मतलब हीरो का मतलब होता ही है जो किसी के लिए महत्वपूर्ण आकर्षण का प्रभवी प्रभाव हो जिसकी आभा में व्यक्ति को खुशी मिलती हो आप मेरे लिये हीरो हैं क्योकि आप मेरे जीवन के आकर्षण भी है और आपके प्रभाव के आभा में मेरी समझ भी यही हृदय कहती है ।
आप हीरो हो टूटी फूटी हिंदी में ही बोल पा रही थी लेकिन भाव यही था याशिका को रेल द्वारा दिल्ली जाना था ट्रैन आयी और यशिका बैठी और ट्रेन चल दी महादेव परिवार महाकाल युवा समूह एक साथ बोल उठे जापनी गुड़िया थी महाकाल वासियों के लिए जो एक सुनहरे स्वप्न की तरह आयी और चली गयी सभी ने उसके सकुशल जापान पहुँचने की महाकाल से प्रर्थना की और याशिका की महाकाल भक्तों ने महाकाल में याशिका की उपस्थिति के विशेष पल प्रहर को आने स्मरण में सदा के लिए समेट लिया।

नन्दलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर उत्तर प्रदेश।

Language: Hindi
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