आओं बादल
लौट गया बादल बिन बरसे
तन – मन फिर कैसे हँसे, कैसे हरसे?
स्वेद -कण सूख न पाया सर से
घट – पनघट भर न पाया जल से
ताल – तलैया खाली – खाली है
अन्न बिना घर भी खाली खाली है
धरती का धर सूखा -सूखा है
चहु :ओर इसी के चर्चे हैं –
हो रामा! अब दिन बितेंगे कैसे.?
बुआई किसान न कर सकें
भदई के भाग न खुल सकें
खरीफ भी कहाँ शरीफ रह गए
रवि इतना यहाँ क्यों तपे?
मानव मन हैं अकुलाये से
वन की हरियाली है पीले से
पशु – पालक को हरा चारा मिले कैसे ?
अम्बर में बादल है, लेकिन है सूखा
कहाँ रख आया है जल उसने, क्यों है सूखा ?
किसानों के साथ हुआ है निश्चय ही धोखा
बादल को बरसने से किसने है रोका?
हे इन्द्र! जलद को बरसने को दे दो मौका
पीने को पानी नहीं, खाली है लोटा
हे सरकार ! तुम भी कुछ करो
भूखे रह जायेंगे सभी, इनके पेट भरो.
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@ रचना – घनश्याम पोद्दार
मुंगेर