आएगी सबकी बारी
==आएगी सबकी बारी==
जो घर में रख न सके तुम अपनों को कभी
अब गैरों को हमदर्दी दिखाते क्यूँ हो।।
माता-पिता को तो तरसाया सूखी रोटी को
वृद्धाश्रम में हलवा पूरी बंटवाते क्यूँ हो।।
जर्जर कर दिया वृद्ध काया को तन से,मन से
पराये बुजुर्गो के इलाज का खर्चा उठाने के ये ढकोसले दिखाते क्यूँ हो।।
जीते जी न मनाई कभी जिनके जीने की खुशी
मौत के बाद वृद्धाश्रम में उनकी जयंती पर मिठाइयों बंटवाते क्यूँ हो।।
जो तिरस्कृत थे, बेकार थे, बोझा थे कभी
अब श्राद्धों में, पुण्यतिथियों में उनकी
झूठे दिखावे में अब उनके गुण गाते क्यूँ हो।।
दो घड़ी उनके लिए पास न थी
कभी तुम्हारे फुर्सत
आज तुम बार- बार वृद्धों के साथ आश्रम में समय बिताते क्यूँ हो।।
दुष्कर्म सत्कर्म में और बद्दुआ बदल जाए दुआओं में
इसकी फिराक में दान- पुण्य का
दुनिया की आंखों में परदा लगाते क्यूँ हो।।
डर रहे हो कि अब तुम्हारी भी बारी आई ।
दिख रहा तुम्हें तो अब इधर कुंआ उधर खाई।
नयी पीढ़ी चतुर है, समझदार है।
उसे दिख रहा अतीत का आईना साफ – साफ है।
परिणाम देगी वो तुम से भी बेहतर
रुको- रुको भागकर जाते क्यूँ हो।।
——–रंजना माथुर
दिनांक 10/07 /2017 को मेरी स्व रचित व मौलिक रचना
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