आइये हम मिलते हैं तेज़ाब के शिकार से !
आइये हम मिलते हैं तेज़ाब के शिकार से
ऊधडी हुई खालों में सिसकती बयार से.
गलती हुई खालों से उठती, अजीब सी सड़ाँध से
आइये हम मिलते हैं तेज़ाब के नाज़ुक शिकार से.
नाम दिया था माँ ने ‘काजल’ बचपन में प्यार से
कहती थी बिटिया झुकना न कभी अत्याचार से.
फूलों सी नाजुक़ वो,भोर कि दूधिया सी आँच है
हिरनी जैसी चालों वाली लड़की वो साँच है .
हांथो में किताब मन में अजब सा आत्मविश्वास है
देखने में लगती है, गुलाब की कली कोई ख़ास है.
माँ से लिपट कह रही थी, हंसी – ठिठोली में
पढ़-लिख कर नाम करुँगी, बैठूंगी न डोली में.
मुड़ के देखा पीछे तो अजब सा दृश्य साकार था
चार भेड़िये खड़े थे जिनपे स्वयं कामदेव सवार था.
भय से कांप गई, दुष्टों की मनसा को पल में भांप गई
अज़नबी बाँहों को, कांपते होठों के कुत्सा से नाप गई.
अपने ही घर में अजनबियों को विरोध से चाप गई
मान तो बचा लिया, हार गई बस तेज़ाब के ताप से.
शरीर के अदना से हिस्से के कलुषित ब्यभिचार से
कली से काजल की कोठरी बनी बस एक ही वार से.
अब दहक रही है, धधक रही है, पिघल रही है वो
भेड़ियों के हाथों के तेज़ाब की आग में जल रही है वो.
चीख कर रह गई, छटपटाई जलते पतंगे के समान वो
गिर पड़ी थी जमीन पर, जलती लकड़ी के समान वो.
जुट गई थी भीड़ सब के लब पे एक ही सवाल था
था कौन, कौन दरिंदों का ऐसा अपघाती दलाल था.
हर किसी के लब पे बस प्रतिशोध पर बबाल है
देखिये तो लड़की की जिंदगी अब कैसे मुहाल है.
आईये अब मिलते हैं ‘काजल’ के अनकहे सवालों से
उठती हुई आहों से दिल के उबलते हुये छालों से.
देह कि चाह थी तो, देह को ही क्यूँ जलाया
नाज़ुक सी कली को मोम जैसा क्यूँ गलाया.
चाहते थे तुम मुझको, चलो इसका भी विश्वास है
अब मुझको भी तुम्हारे सच्चे प्रेम की ही आश है.
अब आग सी लगी है बदन के बाज़ार में
दुर्गंध भी उठ रही है गुलाबी दरबार से.
प्रेम के फूल से अब तुम मुझको जरा सहलाओ तो
दर्द और जलन को प्रेम के गंगा जल से नहलाओ तो.
आओ-आओ अपना पहले जैसा प्रेम ही बरसाओ
सड़ती-ग़लती देह पर कामवासना ही दरसाओ.
मुँह मत फेरो, आँख भी न चुराओ तुम
सज़ा के डर से यूँ भाग मत जाओ तुम.
माफ़ भी करुँगी तुमको, दिल को साफ़ भी करुँगी मैं
अब सदा-सदा के लिए, तुम्हारा ही हाँथ भी धरूंगी मैं.
पर रुको ज़रा, आँख खोलके,आँख तो मिलाओ
आँख मिला के जरा एक बात तो बताते जाओ.
हमारे प्रेम के मिलन से बेटी गर हुई तो
चलती-फिरती फूल की डाली गर हुई तो.
अपने जैसे प्रेमियों के चाह से उसे कैसे बचाओगे
आह…बोलो तो तेज़ाब के आग से कैसे बचाओगे…?
***
22-04-2019
सिद्धार्थ