आंधियों से हम बुझे तो क्या दिए रोशन करेंगे
ज्यौं दीया जलाया हमने आंधियां चलने लगी..,
आंधियों से हम बुझे तो क्या दिए रोशन करेंगे |
हमारी हर मंजिल से आगे संघर्षों के बादल हैं,
हौसला हुआ पश्त तो संघर्षों से क्या लड़ेंगे |
अनन्त उड़ान का सपना लेकर उड़ने की हो आशा
बेडीयो में जकड़े हैं तो अब परिंदे कहां उड़ेंगे |
अपनों के साथ रहकर गैरों की जागीर में है जो,
अपनों के हक में आकर वह हक से कहां लड़ेंगे |
दोगले चेहरों के साथ रहकर मन उकता गया है,
मेरे हक में हुआ तो ऐसे दोस्तों से राफ्ता करेंगे |
मेरे दिल में जो कुछ पल ठहर के गुजरा था ,
कभी राहो में मिले तो उससे भी सजदा करेंगे |
वह दिल भी मेरी चाहत में उकता गया होगा,
जो कहता रहता था सात जन्मों का साथ करेंगे |
दिल नहीं मिला सके उससे तो क्या हुआ सरल
स्वप्न में ही सही लेकिन उससे राफ्ता करेंगे |
उसकी मर्जी उसने जिसको बना लिया अपना,
क्यों खिलाफ जाकर , हम आवाज करेंगे |
उसके चले जाने पर हम पर क्या-क्या गुजरी है ,
कभी अकेले में मिलना इस पर भी बात करेंगे |
✍कवि दीपक सरल