आंगन
आंगन
यह आंगन
जिसमें बिता
हमारा बचपन
बहनें तो
नदियों माफिक
छोड़कर पहाड़ को
जा मिलीं
अपने-अपने सागर में
हम दोनों भाई
निकले थे
दाना-चुगा लेने
चिड़िया की तरह
दोनों की ही
नहीं हो पाई वापसी
अपने घोंसलों में
यह आंगन
देता है ममता
मां की तरह
जब किसी अवसर पर
हो जाते हैं इकट्ठे
इस आंगन में
हम सब भाई-बहन
-विनोद सिल्ला©