आंखें
जुबां से न सही,आंखों से बोलना मुझे
जो भी रह गया हो बांकी, कहना मुझे ।
में न भूलूंगा कभी,चाहे भूल जाओ मुझे
जब -जहां मिले थे, ठिकाना याद है मुझे ।
हर दिन होली, हर रात दिवाली- सा था
दिन जलाता है, रात काटती है अब मुझे
ना देगा कोई साथ ,जीवन में दूर तक तुझे
भटकोगी , पलभर बाहों में कोई लेले मुझे ।
गुजरता है किस तरह, रिंग कर बताना मुझे
दिन बेचैन,नींद क्यों न आती सुबह तक मुझे ।
दोस्ती न सही , दुश्मनी न देना भूलकर मुझे
हो यदि सामना, आंखे न चुराना देखकर मुझे ।
जुबां से न सही , आंखों से भी बोलना था मुझे
जो भी रह गया था बांकी, अब भी सुनना मुझे ।
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@मौलिक रचना – घनश्याम पोद्दार
मुंगेर