आँधियों से क्या गिला …..
आँधियों से क्या गिला …..
2122 2122 2122 212
रूठ जाएँ मंजिलें तो रहबरों से क्या गिला
हो समन्दर बेवफ़ा तो कश्तियों से क्या गिला
टूट जाए घर किसी का ग़र हवाओं से कहीं
वक्त ही ग़र हो बुरा तो आँधियों से क्या गिला
याद आया वो शज़र जिस पर गिरी थी बारिशें
आज भीगे हम अकेले बारिशों से क्या गिला
ज़ख्म यादों के न जाने आज क्यूँ रिसने लगे
दर्द के हों जलजले तो आँसुओं से क्या गिला
ज़िन्दगी के रास्ते हैं आज क्यूँ ख़ामोश से
दे गये अपने दगा तो दुश्मनों से क्या गिला
सुशील सरना