अहसास तेरे….
अहसास तेरे
हर्फ दर हर्फ
महसूस कर रही हूँ,
तलाश मेरे मन की
आज तुझ पर
खत्म कर रही हूँ।
इज़हार का
तू ज़रिया मेरा
जज्बात छिपे मेरे तुझमें
पन्नों में प्रकृति
और प्रकृति के पन्नों में
भाव मेरे दिखे मुझमें
कुछ अनकहे अनसुने किस्से
लफ़्ज़ों में ढूंढ रही हूँ
तलाश मेरे मन की
आज तुझ पर
खत्म कर रही हूँ
गूंज रही तेरी सदा
गहरे सलेटी अम्बर तले
पर्वतों पर
पर्वत जहां से
गिर रहे
मीठे शब्दों के झरनें
इन्हीं शब्दों को मैं पी रही हूँ
तलाश मेरे मन की
आज तुझ पर
खत्म कर रही हूँ
संतोष सोनी “तोषी”
जोधपुर ( राज.)