अहं के अंधकार मेँ
अहं के अंधकार मेँ
मैं ही राजा, मैं ही प्रजा
मैं ही ईश, मैं ही जीव
मैं ही अग्नि, मैं ही जल
मैं ही प्रकाश, मैं ही अंधकार
मैं आकर, मैं ही प्रकार
मैं ही अहं, मैं ही व्यंग
मैं ही योगी, मैं ही भोगी
मैं ईश मेँ समर्पित
ईश मेरे मेँ समर्पित
मैं सब मेँ समर्पित
सब मेरे मेँ समर्पित
अतः
मैने खाया, सब ने खाया
मैंने पूजा, सब ने पूजा
मैं ही मेँ, मैं ही मैं..
अहं ब्रह्मः अस्मि
ॐ तत सत
मनुष्य जीवन में “अहं ”
क्षती स्पर्धा लाती है,
एवं जीवन सम्पूर्ण रुप से
त्राहि त्राहि हो जाती है