Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
20 Apr 2023 · 2 min read

*अहंकार *

डा . अरुण कुमार शास्त्री – एक अबोध बालक – अरुण अतृप्त

*अहंकार *

मानवता का आदर्श मर्यादा से अभिसिंचित होता है । मनुष्य का मनुष्य के प्रति व्यवहार मर्यादा से ही आबद्ध रहता है, शरीर में जैसे त्वचा का आवरण है, न भाई , उसी प्रकार मनुष्यता में मर्यादा का आवरण प्रतिबद्ध रह्ता है यही महत्व पूर्ण है । यही जीवन की सार्थकता के लिए इसकी रक्षा के लिए प्रत्येक मानव का परम कर्तव्य है । श्री की स्थापना अहंकार के साथ असम्भव है | और प्रयास क्या रह्ता है मनुष्य का, सभी को अपने संरक्षण में रखें । अपने अंकुश में रखे | ये तो बडी अजीब स्थिति है खुद का खुद पर नही नियन्त्रण मन का पन्छी सोच रहा है कैसे कर लू जग संतर्पण |
अविकारी होना अस्मभव है विकारों के साथ जीना एक दम सहज है , गुरु तुम्हारी इसी स्थिति को इस कमजोरी को भली भान्ति समझता है रोज रोज एक ही मन्त्र देगा – अविकारी बनो , अविकारी बनने क सरल उपाए समझाता है , सब कुछ छोड उसकी शरण में आ जाओं अर्थात अपने पर अपना नियन्त्रण छोड गुरु के अधिकार में रहो , तुम्हारी स्थिति , शून्य और गुरु की – सर्वागीण – ऐसा कैसे सम्भव है इश्वर के मनुष्य को स्वतंत्र बनाया है – किसलिए ? क्या यही काम रह गया | बुद्धि दी – क्या इसी लिए ज्योति दी क्या इसीलिए रसना जिव्हा कर्ण नासिका किसलिए – ? इसी लिए के आप किसी के गुलाम बन जाओ ? न रे मुन्ना न – किसी से ज्ञान लेना उसका कृतग्य होना महत्वपूर्ण है लेकिन कृतज्ञता के मध्य गुलामी न रे मुन्ना ना | ये स्वीकार कर लेना अतिशयोक्ति होगी , करते हैं प्रतिदिन असंख्य | फेंसला सबका स्वयं का होता है | यही है सबसे महत्वपूर्ण प्रसंग |
गुरु कह्ता है – निर्विकार अवस्था अच्छी है – बिल्कुल सही मानने वाली बात है – अब आप निर्विकारी होने के लिए प्रयास कर रहे , नही हो रहा , होगा भी नही , फिर क्या गुरु गलत है , अरे नही मुन्ना गुरु कभी गलत हो नही सकता | फिर क्या मैं पापी हुँ , ये भी गलत , फिर क्या ये मेरे बस से बाहर है , मैं क्या कभी निर्विकारी नहीं हो पाऊँगा | ये भी गलत – फिर सही क्या है | देखो हम जिस चीज के पीछे भागते हैं वो चीज सदा से हम से उत्ती दूर भागती , लेकिन शान्त स्वभाव से उसका स्मरण करते करते एक दिन मन अभायसी हो जाता है जिस की इच्छा होती उसका | यही स्थिति है उस भाव , वस्तु , को काबु करने का यही सही समय है उसको फटाक से प्राप्त करने का |
अहंकार के बिना मनुष्य का कोई आकार नही हो सकता लेकिन उसका भाव उसके भाव को अपनी अभिव्यक्ति से आगे रख कर चलना सीख जाना सही मानवीय उपलब्धि है |
ये भाव ये गुण ये मन्त्र जिसने समझ लिया वही अविकारी , निरंकारी , निर्विकल्पा हो जाता उसी क्षण |

204 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
Books from DR ARUN KUMAR SHASTRI
View all
You may also like:
और चलते रहे ये कदम यूँही दरबदर
और चलते रहे ये कदम यूँही दरबदर
'अशांत' शेखर
*देहातों में हैं सजग, मतदाता भरपूर (कुंडलिया)*
*देहातों में हैं सजग, मतदाता भरपूर (कुंडलिया)*
Ravi Prakash
छोटी सी दुनिया
छोटी सी दुनिया
shabina. Naaz
उर्दू वर्किंग जर्नलिस्ट का पहला राष्ट्रिय सम्मेलन हुआ आयोजित।
उर्दू वर्किंग जर्नलिस्ट का पहला राष्ट्रिय सम्मेलन हुआ आयोजित।
Shakil Alam
ईद आ गई है
ईद आ गई है
डॉक्टर वासिफ़ काज़ी
बांते
बांते
Punam Pande
हम दोनों के दरमियां ,
हम दोनों के दरमियां ,
श्याम सिंह बिष्ट
■ सब परिवर्तनशील हैं। संगी-साथी भी।।
■ सब परिवर्तनशील हैं। संगी-साथी भी।।
*Author प्रणय प्रभात*
सच समझने में चूका तंत्र सारा
सच समझने में चूका तंत्र सारा
Umesh उमेश शुक्ल Shukla
पिंजरे के पंछी को उड़ने दो
पिंजरे के पंछी को उड़ने दो
Dr Nisha nandini Bhartiya
आज फिर वही पहली वाली मुलाकात करनी है
आज फिर वही पहली वाली मुलाकात करनी है
पूर्वार्थ
#ekabodhbalak
#ekabodhbalak
DR ARUN KUMAR SHASTRI
"राजनीति"
Dr. Kishan tandon kranti
Being quiet not always shows you're wise but sometimes it sh
Being quiet not always shows you're wise but sometimes it sh
Sukoon
**** बातें दिल की ****
**** बातें दिल की ****
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
माता रानी दर्श का
माता रानी दर्श का
ओम प्रकाश श्रीवास्तव
आज का महाभारत 2
आज का महाभारत 2
Dr. Pradeep Kumar Sharma
दुनिया को ऐंसी कलम चाहिए
दुनिया को ऐंसी कलम चाहिए
सुरेश कुमार चतुर्वेदी
प्यार का रिश्ता
प्यार का रिश्ता
Surinder blackpen
अन्त हुआ सब आ गए, झूठे जग के मीत ।
अन्त हुआ सब आ गए, झूठे जग के मीत ।
sushil sarna
विषम परिस्थियां
विषम परिस्थियां
Dr fauzia Naseem shad
23/122.*छत्तीसगढ़ी पूर्णिका*
23/122.*छत्तीसगढ़ी पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
*माटी की संतान- किसान*
*माटी की संतान- किसान*
Harminder Kaur
चमकते चेहरों की मुस्कान में....,
चमकते चेहरों की मुस्कान में....,
कवि दीपक बवेजा
Forget and Forgive Solve Many Problems
Forget and Forgive Solve Many Problems
PRATIBHA ARYA (प्रतिभा आर्य )
जल रहें हैं, जल पड़ेंगे और जल - जल   के जलेंगे
जल रहें हैं, जल पड़ेंगे और जल - जल के जलेंगे
सिद्धार्थ गोरखपुरी
मैं चाहती हूँ
मैं चाहती हूँ
ruby kumari
बहुत हैं!
बहुत हैं!
Srishty Bansal
💐अज्ञात के प्रति-136💐
💐अज्ञात के प्रति-136💐
शिवाभिषेक: 'आनन्द'(अभिषेक पाराशर)
शुभ प्रभात मित्रो !
शुभ प्रभात मित्रो !
Mahesh Jain 'Jyoti'
Loading...