अस्त-व्यस्त सी सलवटें, बिखरे-बिखरे बाल।
अस्त-व्यस्त सी सलवटें, बिखरे-बिखरे बाल।
रैन द्वन्द्व का कह गई, आँखें सारा हाल।
कैसे कह दें रात के , उत्पातों की बात –
सोच -सोच के हो गए, सुर्ख़ शर्म से गाल ।
सुशील सरना/
अस्त-व्यस्त सी सलवटें, बिखरे-बिखरे बाल।
रैन द्वन्द्व का कह गई, आँखें सारा हाल।
कैसे कह दें रात के , उत्पातों की बात –
सोच -सोच के हो गए, सुर्ख़ शर्म से गाल ।
सुशील सरना/