असली चेहरा
कमसिन मुनिया के अपहरण से इलाके में सनसनी फैल गई थी। हाल यह था कि गांव वाले अपनी बच्चिों को बाहर भेजने से डर रहे थे। सप्ताह भर की मशक्कत के बाद हिफाजत महकमे ने बेसुध हालत में मुनिया को बरामद कर अपने खाते में गुडवर्क दर्ज कर लिया था, लेकिन अस्ल मुलजिम अभी भी गिरफ्त से दूर था। मुनिया की दयनीय हालत और तमाम चर्चाएं उसके साथ हुई अनहोनी की चुगली करने को काफी थी। हिफाजत महकमे के अधिकारी भी सच से बखूबी वाकिफ थे। वारदात में शामिल गुनाहगार को बेनकाब करने की हिम्मत सरकारी मशीनरी में नहीं थी। पुलिस के अलावा महिला आयोग और न जाने कौन-कौन जांच में जुटे हुए थे।
अस्पताल में भर्ती मुनिया को लेकर सियासी रोटियां सेकने की शुरुआत हो चुकी थी। सहानुभूति जताकर या मदद करने के बहाने फोटो खिंचवाने वालों की होड़ सी लगी थी। ”विधायक जी, आइए मुनिया इधर है।” फोटो खिंचाने के लिए किसी ने आवाज लगाई। ”नहीं-नहीं मुझे माफ कर दो, मैनें तो पहले ही वादा किया था… मैं किसी से कुछ नहीं कहूंगी, भगवान के लिए मुझे बख्श दो विधायक जी…” होश में आते हुए सहमी हुई मुनिया की चीख ने जनता की अदालत के सामने सारी विवेचनाएं पूरी कर दी थीं।
© अरशद रसूल