#अष्टगंध धूम
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● ईस्वी सम्वत दो हजार बीस मास मार्च दिनांक सत्रह को यह कविता लिखते समय जो मेरा विश्वास था वही आज भी है कि यदि आयुर्वेद को यथोचित सम्मान मिले तो कीट कोरोना तुरंत अपने घर लौट जाएगा ●
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★ #अष्टगंध धूम . . . ! ★
प्रकृति लुटाए निजसंपदा
चैत्र शुक्ल प्रतिपदा
नीम तुलसी गंगजलाचमन करो ना
‘आनंद’ संवत्सर शुभागमन
उठो ! स्वागत करो ना
आओ साजन खेल करें
दिल से दिल का मेल करें
महके मनमंदिर का कोना-कोना
मैं गोरी हो जाऊं
साजन सांवला सलोना
हिमालय के उस पार साजन
एक अजब संसार साजन
कीट पतंग चौपाये भरा भगौना
नरभक्षण अब दूर नहीं
न फूट-फूटकर रोना
आज कीटों में इक कीट हुआ
ज्यों चींटी की बीट हुआ
जागो ! भय भरो ना
तमसलीन घर-आंगन में
अष्टगंध धूम धरो ना
किन सपनों में खोए हो
हाथ धोए हो कि न धोए हो
काहे को पल्लू भिगोना
हल्दीमिला दूध पियो
छूटे सब सीना-पिरोना
इलायची और दो लवंग
फिटकरी कपूर संग
हिरदे समीप धरो ना
अल्पायु उत्पाद चीन का
तुम यों ही डरो ना
नयन बिरहा बीनते
अधर अधरों को चीह्नते
वरेयु वर वरो ना
अनमोल मधुमास हे प्रियतम
कौड़ी का कोरोना . . . !
#वेदप्रकाश लाम्बा
यमुनानगर (हरियाणा)
९४६६०-१७३१२