अश्क़ जब आँख से निकलते हैं
—–ग़ज़ल—–
2122-1212-22
1-
आतिशे-इश्क़ में यूँ जलते हैं
बर्फ भी आग अब उगलते हैं
2-
लोग जो मुफ़लिसी में पलते हैं
अपनी किस्मत पे हाथ मलते हैं
3-
चलके खंज़र की तेज धारों पर
दिल के अरमान कब निकलते हैं
5-
मुश्किलों से कभी न घबराना
फूल काँटों के बीच पलते हैं
5-
अक़्स उसका दिखाई देता है
अश्क़ जब आँख से निकलते हैं
6-
तीरग़ी मुश्किलों की मिट जाती
दीप उम्मीद के जो जलते हैं
7-
बस खुदा का ही नाम ले करके
रंज़ो-ग़म में भी हम सँभलते हैं
8-
हौसला हो जुनूँ की हद तक तो
आँधियों में चराग़ जलते हैं
9-
एक दिन ज़ायका खुशी का मिले
सोच कर हम तो ग़म निगलते हैं
10-
चाँद को देखकर सदा “प्रीतम”
हाथ अपना चकोर मलते हैं
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प्रीतम राठौर भिनगाई
श्रावस्ती(उ०प्र०)