अविस्मरणीय स्वाद
संस्मरण
सन् 1976 -77 की बात थी इलाहाबाद के पास एक जगह है घूरपूर वहाँ ग्लास फैक्ट्री में पिता कार्यरत थे…उस दिन सभी बड़े उत्साहित थे पाँच फैमिली के साथ हम चित्रकूट घूमने जा रहे थे…गाना गाते , मौज – मस्ती करते , रास्ते भर खाते पीते हम चित्रकूट पहुँच गये , गुप्त गोदावरी , सती अनसुईया , हनुमान धारा इत्यादि घुमते – घुमते रात हो गयी खाना खतम हो चुका था , सबका भूख से बुरा हाल हो रहा था । वहाँ ना कोई होटल ना ढाबा अब क्या करें ? सारे बड़े आसपास पूछने लगे तभी एक साधू वहाँ आया और बोला ” मैं और मेरी पत्नी खाना बना सकते हैं आप सबके लिए ” हम सबको वो भगवान नज़र आने लगा , उसने और उसकी पत्नी ने मिल कर चावल , रोटी और आलू टमाटर की सब्जी जिसमें हल्दी और नमक के अलावा धनिये की थोड़ी सी पत्ती डाल कर बनाई थी…पत्तल लगा सब खाने बैठे पता नही वो भूख थी या वाकई खाना इतना स्वादिष्ट था की सच में सब के सब अंगुलियाँ चाट गये ।
साधु को उसके पैसे दे कर हम घर की तरफ चल दिये…आज 44 साल हो गये उस बात को आज भी उस खाने का स्वाद मेरे ज़बान पर है समझ नही आता क्या वैसी भूख कभी लगी नही या उस साधु के हाथ में जादू था ? वो अविस्मरणीय स्वाद आज भी मुँह में पानी ले आता है ।
स्वरचित एवं मौलिक
( ममता सिंह देवा , 10/10/2019 )