अलग पहचान रखते हैं
दिवाने हैं हथेली पर हमेशा जान रखते हैं
उबलते दर्द सीने में मगर मुस्कान रखते हैं
उजाला बाँटते सबको मोहब्बत ही सिखाते हैं
भले अपना घरौंदा ही सदा सुनसान रखते हैं
मुझे महसूस कर लोगे भले हो भीड़ लाखों की
मिलाते हाथ तो सबसे अलग पहचान रखते हैं
मिले दुश्मन अगर हम से गले से भी लगाते हैं
भरे शोले निग़ाहों में दिल मे तूफान रखते हैं
तुझे पाने की हसरत है मगर तुम से ही डरता हूँ
तेरी मुस्कान की खातिर छुपा अरमान रखते हैं
मुझे लूटा यहाँ जिसने अगर मेरे दर आता है
भुला सारे गिले शिकवे बना मेहमान रखते हैं
सितमगर लाख हो कोई डिगा सकता नही मुझको
जुदा कैसे करोगे जिस्म दो इक जान रखते हैं
– ‘अश्क़’