अर्थ
1982 में आई दो दिग्गज अदाकाराओं की एक बेहतरीन मूवी है,अर्थ।
शबाना आज़मी और स्मिता पाटिल, ये दो अभिनेत्रियाँ ऐसी हैं,जिन्होंने किरदारों को नहीं जिया,किरदारों ने इन्हें जिया है।
पूजा,इन्दर और कविता के नामों से सजी यह फिल्म एक यादगार फिल्म है।
किसी की शादीशुदा ज़िंदगी में विश्वास का दरकना और उसके साथी का बेवफ़ा हो जाना,निश्चित हीं दुखदायी है,ये घाव बरसों बरस रिसता रहता है,मगर स्वीकृति और सहज स्वीकृति इस चोट पर मरहम जैसी हो जाती है।उलझनें बहुत हैं ऐसे रिश्ते को स्वीकार करने में,मन -मंथन भी बहुत है,मगर जो चीज़ हाथ में आती है,वह सुकून देने वाली होती है।
इस कहानी का हर पात्र,सहानुभूति के योग्य है।अक्सर हमको लगता है कि किसी भी अनचाही स्थितियों के पैदा होने का कारण इंसान है,मगर इससे भी ज़्यादा वो परिस्थितियाँ हैं जिन्होंने ऐसी घटनाओं को जन्म दिया।
कुल मिलाकर फिल्म की कहानी मन को छू लेने वाली है।
मगर जो इस फिल्म में सबसे बेहतर बात लगी वो नायिका पूजा का वह चुनाव था जो उसने अपने एकाकी जीवन के लिए लिया।
क्यूँ ये ज़रूरी हो जाता है कि एक का साथ अगर छूट जाए तो हम किसी सहारे के रूप में उस जैसा हीं एक और ढूँढे?
सहारों के बहुत सारे आयाम हो सकते हैं।हम अपना जीवन और कई तरीके से सार्थक बना सकते हैं।वही नायिका ने भी किया।
कुल मिलाकर यह फिल्म एक सुखद संदेश दे जाती है कि
अब साथ मेरे चल रहे,जुगनू औ सितारे हैं
तन्हा सफ़र कहाँ है,मेरे पास उजाले हैं
इस फिल्म में गानों का कलेक्शन भी लाजवाब है।
शुक्रिया!!!