अरदास
है मन मे खुशी अपार, गुरु जी कब आओगे म्हारे द्वार।
रेल खेल मैदान में आये, नर नारी दर्शन को धाये।
भर भर कै आशीष लुटाये, कर दिया बेड़ा पार।
गुरु जी कब आओगे म्हारे द्वार।
कोई शहर से, कोई गाँव से, कोई मोटर से कोई नाव से।
कोई प्रेरणा से, कोई चाव से, पहुंचा दिव्य दरबार।
गुरु जी कब आओगे म्हारे द्वार।
इधर भी आये उधर भी आये, गंग जमन के मध्यर आये।
पूरब, पश्चिम, उत्तर आये , दिया हमका नगर विहार।
गुरु जी कब आओगे म्हारे द्वार।
ये नजरें प्यासी प्यासी सी, करो दूर सबकी उदासी सी।
” मंगू” की याद भुलासी सी, इसमें भर दो सत्कार।
गुरु जी कब आओगे म्हारे द्वार।