अमीरों की बनकर रही रौशनी है
अमीरों की बनकर रही रौशनी है,
गरीबों के हिस्से मे बस तीरगी है।
मै बातें करूं चांद तारों की कैसे,
मुझे रौशनी जुगनुओं से मिली है।
मिरी मुश्किलों से रही दूरियां जो,
दुआ साथ मां की हमेशा रही है।
भटकती है दिन भर यहां से वहां जो,
मुहब्बत नही है ये आवारगी है।
वो भटका नही राह से फिर कभी भी,
जिसको खुदा की मिली रहबरी है।
फ़लक से भी ऊपर गये हैं ‘सिवा’ वो,
निगाहों मे जिनके बुलन्दी रही है।
सिवा संदीप गढ़वाल