अमावस्या और पूर्णिमा
एक खगोलीय घटना
अमावस्या/पूर्णिमा/सूर्य-ग्रहण/चंद्र-ग्रहण
विचारक/दार्शनिक व्यक्तित्व की देन,
धर्म/धार्मिक/अंधभक्त कल भी/ आज भी वंचित/दुखी थे और रहेंगे.
दासता की विचारधारा अपने आसपास का माहौल भी दयनीय रखना.
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धर्म का व्यवहार से
व्यवहार का व्यवसाय से
सदियों पुराना बर्ताव है.
ताज्जुब की बात
लेने में भौतिक एसेट्स/जैसे पैसा, भूमि, पशु, साधन..गाडी.. मोटर..कार
बदले में अपाहिज़ मनोबल को तनिक सहारा.
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उदाहरण जैसे किसी गाडी के सेल्फ के काम न करने पर.
उसे धक्का देकर स्टार्टअप देना.
स्टार्टअप के बाद भी कोई धक्के देते देखा है.
शायद ! नहीं ही नहीं ..कभी नहीं.
लेकिन प्राप्त मनोबल …क्षणिक था.
कोई समस्या विपदा आते ही
फिर धक्के की जरूरत.
उसका कभी ध्यान ही जाता है.
वह एसेट्स देखर बदले में क्या लेकर आता है.
और यह सिलसिला चलते रहता है.
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भौगोलिक घटनाएं और उनकी जानकारी.
फायदे और नुकसान को जानने तक तो ठीक है.
पर धर्म/धार्मिक अनुष्ठान.
चलो कुछ को सुकून मिलता है.
तो किसी का मनोबल.
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विचारक/दार्शनिक/वैज्ञानिक/मनोविज्ञान
आपको अपने ही द्वारा निर्मित जाल यानि
चक्रव्यूह से निकालने में मद्देनजर सहायक
हो सकते है …लेकिन आलस्य छोडकर
होमवर्क करना होगा.
व्यस्तता छोडकर व्यवस्थित होना पड़ेगा.
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धार्मिक ग्रथों से दूध और पानी अलग करने की कला
सिखनी पड़ेगी, चीजों और तथ्यों के प्रति खुद जानकारी लेनी होगी.
सार्वजनिक सार्वभौमिक धरोहर की विरासत सबकी घोषित करनी पड़ेगी.
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फिर आप खुद कह सकते हैं.
अमावस अमावस्या ही रहेगी
पूर्णिमा पूर्णमासी ही रहेगी.
सूर्य-ग्रहण और चंद्र-ग्रहण
ग्रहण नहीं लगा सकते…
ये आनंदित भौगोलिक घटनाएं ही रहेगी.
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फिर तुम्हें न कोई ठग सकता.
न ही दास वा गुलाम बना सकता.
तुम मुक्त हो …
अब तुम्हें न ही किसी मोक्ष की आवश्यकता.
तुम स्वतंत्र पैदा हुये थे
स्वतंत्र ही स्वाभाविक मृत्यु आयेगी.
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मनोबल की ताकत को पहचाने.
उसका प्रयोग/उपयोग करो.
फिर ये दुनिया दुनिया नहीं जगत है.
जो एकमात्र सत्य .
वैद्य महेन्द्र सिंह हंस