अब फ़रियादें घुटेंगी नहीं
अब फ़रियादें घुटेंगी नहीं
अब शब्द अटकेंगे नहीं
सिले होठों को अब चीखना होगा
रुंधे हुए गले को चितकरना होगा
पर्ची चाहे जो भी निकले
‘कहो’ या ‘सुनों’
उसे कहने से पहले सुनना भी होगा
सुन कर फिर कहना भी होगा
क्यूंकि औरत प्रेम और जीवन दोनों की धूरी है…
और ये संभव नहीं की
धूरी बहुत दिनों तक रखी जाय अधूरी है…
… सिद्धार्थ