अब सुप्त पड़ी मन की मुरली, यह जीवन मध्य फँसा मझधार।।
🙏 जय माँ वागीश्वरी 🙏
#विधा:- अरविंद सवैया आधारित गीत
विधान:- 8 सगण + 1 लघु
112 112 112 112, 112 112 112 112 1
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सजना सपना गहना सपना, सुख साथ नहीं दुख की भरमार।
अब सुप्त पड़ी मन की मुरली, यह जीवन मध्य फँसा मझधार।।
परदेश बसे सुधि लेत नहीं,
मन विह्वल है झरता दृग नीर।
बिलमाय लयी सखि सौतनिया,
उसमें दिखती उनको अब हीर।
वह दूर गये अरु भूल गये,
यह सोच सदा मन होत अधीर।
बिन साजन कौन सुने बतिया,
किससे कहती हिय की सब पीर।
विलगाव मिला किस कारण से, किस कारण आज गया मन हार।
अब सुप्त पड़ी मन की मुरली, यह जीवन मध्य फँसा मझधार।।
तुम देख दशा हिय की सजना,
सच पागल सी रहती दिन-रात।
तन शूल चुभे मन कम्पित है,
विरही बदरंग हुआ मम गात।
मम दग्ध हुई वसुधा उर की,
सह लूँ अब कौन विधा यह घात।
दृग में निज लोर भरा रहता,
दुख की दिन-रात हुई बरसात।
अनुराग मिटा किस कारण से, सजना कब शुष्क हुआ व्यवहार।
अब सुप्त पड़ी मन की मुरली, यह जीवन मध्य फँसा मझधार।।
सपनें सब चूर हुये मन के,
अरु खण्डित है नव जीवन आस।
बलमा बिन व्यर्थ लगे अब तो,
इस जीवन में सब ही मधुमास।
उनके बिन तीज न पर्व मने,
अधरों पर लुप्त हुई मृदुहास।
बिन साजन व्यर्थ लगे जग भी,
यह जीवन आज लगे खरमास।
उर की दुविधा सखि आज यहीं, बस नैनन नीर मिला उपहार।
अब सुप्त पड़ी मन की मुरली, यह जीवन मध्य फँसा मझधार।।
✍️ संजीव शुक्ल ‘सचिन’
मुसहरवा (मंशानगर)
पश्चिमी चम्पारण, बिहार